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________________ प्रस्तावना [63 हैं (3) गाथा-पद्धति पज्जुण्णचरिउ में तीसरी काव्य-शैली गाथा-पद्धति की उपलब्ध होती है। प्रयुक्त गाथाओं की यह विशेषता है कि इन्होंने मुक्तक-काव्य की परम्परा को छोड़ कर प्रबन्ध-काव्य की परम्परा में प्रवेश किया है। ये गाथाएँ कडवक के प्रारम्भ में विषय की उत्थानिका के रूप में आयी हैं। इनकी एक विशेषता यह भी है कि ये ऐसे प्रकरणों में अंकित की गयी हैं, जहाँ शृंगार-विलास एवं कौतुक के प्रसंग आए हैं। उदाहरणार्थ कुछ गाथाएँ निम्न-प्रकार एउ रूविणियहि कज्जे वद्धचेलं चलम्मि भण्णत्ती। मुणिवि सुधं दव्वं सच्चाए विलेवियंअंग ।। छ।। -3/6/1.2 बहुलोध भुजमागो शववाहु सरिसो पुरम्मि । महुमहणो अणु-दिणु अणुरत्तमणो अछइ रह लालसो जम्मि।। -34/1-2 हय-गय-करहा णत्थं खाणे पउरंपि णिम्मियं जंपि।। दिपणतं तहो दुरियं सच्चाएसेण सयल मिच्चेहिँ ।। -11/22/1-2 जं किंपि भच वत्यू विवरीयं तं कुणेइ तं सयलं ।। भमइव एव कीलाए विप्पो णयरस्स मज्झम्मि ।। छ।। - 04/1-2 पज्जुण्णचरिउ में कथानक-रूढ़ियाँ पूर्ववर्ती अन्य प्रबन्ध-काव्यों की भाँति ही पज्जुण्णचरिउ में भी कथानक रूढ़ियों का निर्वाह हुआ है। जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है कि कथानक-रूढ़ियाँ प्रधानत: लोक-विश्वासों एवं सम्भावनाओं की उपज होती हैं। इनसे कथा-प्रवाह में तो गतिशीलता आती ही है, साथ ही कथा में सरसता एवं रोचकता भी उत्पन्न होती है। महाकवि सिंह मूलत: कवि हैं, कथाकार नहीं, अत: उसके पज्जुण्णचरिउ में कथानक-रूढ़ियों के प्रयोग प्रचुर मात्रा में तो नहीं मिलते, फिर भी जो कथानक-रूढ़ियाँ उसमें उपलब्ध हैं. वे निम्न प्रकार है1. स्वप्न-दर्शन एवं उनका फल-कथन -3/10 2. भविष्यवाणी -11015 3. नारद की सक्रियता –1/15-16, 2/1-10 4. योग्य वर-प्राप्ति हेतु स्वयंवर -6/3:9, 6/4 5. नख-शिख वर्णन -8/16, 1211 6. प्रेमी अथवा प्रेमिका द्वारा चित्र-दर्शन एवं उनमें परस्परिक आकर्षण -2/11 7. प्रिय-प्राप्ति हेतु युवती-कन्या का तपश्चरण –8/16 8. निर्जन-वन में प्रेमी-प्रेमिका-मिलन –10/6 9. शकुन-अपशकुन -12/4/2-4. 12/27/8-9, 13/7/3-5 10. नायक द्वारा विद्या-प्राप्ति - 8वीं सन्धि। 11. नायक द्वारा प्रसंगानुकूल वेश-परिवर्तन ...10-11 सन्धियां 12. भाग्यवाद -4/8/1, 14/04) 13. पुनर्जन्म-निरूपण -5-914-6, 9:8 14. दिव्य-विमान द्वारा नभ-यात्रा -103
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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