SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 601 महाका मिह घिरइउ पञ्जुण्णचरित हैं जा भाषा-वैज्ञानिक दृष्टि से अत्यना महत्वपूर्ण हैं तथा जिनके साथ आधुनिक भारतीय-भाषाओं का सम्बन्ध सरलता से जोड़ा जा सकता है। यथा- चोज्ज आश्चर्य (10/8/1), धरा पकड़ा (9/17/4), तुटैटूटना (1312/6), चप्प-चौपना (13:12:15), झंप झाँपना (13/12/16), फुट्ट फूटना (13/12/15), रेल्लिज-ठेलमठेल (बुन्देली 13/1117) खंचिउ-स्त्रींचा (13/10/2), कोवि-कोई (12/15/8), पल्लट-पलटना (12/20/6), उछलिउ उछला (13/1/2), थड्ढ=थक्का (जमा हुआ) (15/312), सावण श्रावण मास (14/1573), लिय-लिया (14/16/3), वलेइ वलैया (14/18/15), पक्खर-पलान (14/24/5), अवसु अवश्य (बुन्देली-अवस, 15/21/5) खुडत-खुरचना (15/11/5), चुक्क-चूकना (15/19/6), झाड-झाड़न। (15/26/18), आयउ आया (14/4/10), गारउ-गर्व (14/3/II), हरम्म हरम (फारसी, 14/20/7) पलिते पलीता (6/19/2), हस्कारा-हलकारा (बुन्देली, हलकारना) (14/3/17), दुवार-द्वार (बुन्देली, बचेली, 7/375) मइरी-माता (व्रज, 8/19/4) अण्णमणु अनमना (बुन्देली, 11/11/5) ढूंढुरना=घिसटना (9/8/8), विलख-व्याकुल (13/81), थाण—स्थान (बुन्देली, 15/23/15), माइ=मां (भोजपुरी, 12/1/l), डिंभु बालक (राजस्थानी, 3/2/11), डोर-डोर (बुन्देली, 11/14/10), तुप्प=घी (भोजपुरी-तूप, हरियाणवी तुप्प, 11/13/12), परसिउ परोसा (11/2114) दाल-दाल (11/21/5), तुहार-तुम्हारा (भोजपुरी, 11/12/21) छइल्ल छैला (10/214), डोल्लिय-डोल गया (10,2/31) भित्ति-दीवार (बुन्देली. भीत, 10/9/5). मुडिवि=मुड़कर (10/2/3), मोटु-मोटा (10/9/6), पोटु पेट {10/9/6), धुत्त-कुशल (10/8/7), भदु भद्दा (9/1/15), हउभि=मैं हूं (10/102), छल्ला=मुंदरी (10/2/11), जेइउ जितना (10/2/4), खेड्ड-कीड़ा (9/2/8), दिवहु=दिवस (14/9/1), बउ आयु (10/20/5), झोपड़-झोपड़ा (9/9/3), पियारी प्यारी (9/5/13), कुहनी-कुहनी (8/7/10), थण्ण स्तन (9/21/2), मुसुभूरिय=मसल देना (9/19/12), घिण-घृणा (5/1/20), कायर कातर (5/6/9), खील कांटी (बुन्देली. 5/7/6), उसीसो तकिया (बुन्देली, 3/12/11), पग्गह-पगहा (बुन्देली, 11/6/3), रुक्ख वृक्ष (बुन्देली, 13/9/18), रसोइरसोई (13/5/7), थट्ट भीड (बुन्देली, 13/3/6), काई=किसी (राजस्थानी, 3/2/10-11), कसबट्ट कसकुर (बुन्देली, 3/9/5), पयज्ज-प्रतिज्ञा (अवधी, पैज, 3/9/14), चुलु चुत्तु (13/6/10), पाहुण-दामाद (भोजपुरी, 14/1/5), भइणि वहिन (14/21/7), पाव पैर (11/12/13), लट्ठि लाठी (11/12/13)| (8) शैली किसी भी कवि अथवा साहित्यकार के व्यक्तित्व की झाँकी उसकी कृतियों की रचना-ौली में देखी जा सकती है। प्रत्येक साहित्यकार की कृतियों में अन्य साहित्यकारों की कृतियों की अपेक्षा अपना एक वैशिष्ट्य अवश्य रहता है। इसी वैशिष्ट्य निर्धारण का ही दूसरा नाम शैली है। संस्कृत-साहित्य में जिस प्रकार रसमय अभिव्यंजना के लिए महाकवि कालिदास, अर्थ-गौरव के लिए भारवि. माधुर्य, प्रसाद, ओज, रूप त्रिगुण-समन्वय के लिए माघ ललित-पद के लिए हर्ष एवं विकट लिष्ट-बन्धन के लिए बाण प्रसिद्ध हैं, उसी प्रकार अपभ्रंश में ही मृदु ललित-बन्धन के लिए चउमुह, विकट बन्धन के लिए स्वयम्भू एवं श्लिष्ट-बन्धन के लिए अभिमान मेरु पुष्पदन्त प्रसिद्ध हैं। महाकवि सिंह के लिए पूर्वोक्त अपभ्रंश-साहित्य की एक विस्तृत पृष्ठभूमि एवं परम्परा उपलब्ध हुई है। अत: उसकी शैली में पूर्वोक्त समस्त परम्पराओं के सम्मिश्रण के साथ-साथ पौराणिक, ललित, प्रबन्धात्मक-शैली का
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy