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________________ प्रस्तावना [59 थिय (भोजपुरी – एथी) 'इस' के अर्थ में (11/9/10) करत्तिय (भोजपुरी – करंतिया) करने के अर्थ में (10/13/3) चडिल चढ़ने के अर्थ में (2/13/3) बोलने के अर्थ में (9/1/18) छाइज छाने के अर्थ में (13/15:13) (21) वर्तमान कृदन्त के रूप बनाने के लिए 'माण प्रत्यय । यथा— विज्जमाण (13/16/7), गिज्जमाण (13/16/7) आदि। (22) परसर्गों में से ए०च० में कवि ने निम्न परसर्गों के प्रयेग किए हैं। यथा— केरउ (1114:7), तणउ (5/16/5), किर (11/22/8)। (23) पूर्वकालिक क्रिया या सम्बन्ध-सूचक कृदन्त के लिए इवि, एवि, एप्पिणु और एत्रिणु प्रत्ययों के प्रयोग । यथा V मिल् + इवि = मिलिवि (317111)। / अव + लोक - अवला + एवे = अवलोएवि (1312111) प्र + णव + पणव + एप्पिणु = पणनेप्पिणु (15/1/2) V कृ ञ् -- कर् + एविण = करेविण (2!4/12) Vधृ = धर् + एविणु = धरेविणु (2/4/12) V नि-सुण + एविणु = णिसुणेविणु (14/22/11) प्र + विश् = पइस् + एविणु = पइसेंविणु (14/21/4) (24) इसीप्रकार कवि ने प०च० में निम्नलिखित संख्यावाची शब्दों के प्रयोग किए हैं— पढम—प्रथम (6/1/7), विषिण—दो (10/2/4) तिणि तीन (4/2/7), चउ—चार (15/10/3), चयारि—चार (10/20/8), पंच-पांच (14/5/11 अद्धवरिस–आधा वर्ष अर्थात छह माह (15/3/4) सत्त-सप्त, अटठ आठ (7/10/4) णव नौ. दह–दस (5/15/7) एयारह— एकादश—ग्यारह (15712/4), दोदह....द्वादश—बारह (5/15/7), मासद्ध—मासार्ध --- पन्द्रह (दिन) (12/15/5), सोल–सोलह (10/20/9), दुअल 2x8 = सोलह (7/10/4), बाबीस-बाईस (5/15/7), बत्तीस (10/20/9), अडसय—अडसठ (15/12/5), सयतिण्णिसठ --. 360 (4/217), चउसिउ-400 (15112/3), पंचसय—500 (14/5/11), पण्णारहसय—1500 (15/12/5), एयारहसहस-11,000 (15/12/4), कोडि—कोटि-करोड़ (15/12/4)1 (25) ध्वन्यात्मक शब्दों में गड़यड (13/11/4), तडयड (13/11/4), गुमगुमंत (8/11/9), घणघरेणराउ (8/12/1), रणरणत (1116/10), चिक्कत (118/14), घग्घरोलि (13/12/13), हिलिहिलि (10/16/12), टलटल (13/13/I), कलयलु (12/27/1), थरहरइ (10/4/6), लुलाई (10/4/10), कसमसंत (13/16/11), सटिसटि (14/6/3), विलिविलि (14/6/3), थुमुथुमिय (14/6/4) जैसे शब्द प्रमुख हैं। ये शब्द प्रसंगानुकूल हैं तथा अर्थ के स्पष्टीकरण में विशेष रूप से सहायक सिद्ध हुए हैं। (26) अपभ्रंश व्याकरण सम्बन्धी उक्त विशेषताओं के अतिरिक्त पज्जुण्णचरिउ में ऐसे शब्द भी प्रयुक्त हुए
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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