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महाकड़ मिड विरहउ पज्जुण्णचरित
(4/14/13) तथा अपवाद के रूप में माणथंभ मानस्तम्भ (8/3/7) दिक्ख<दीक्षा 5/15/3 ।
(11) कुछ ध्वनियों का आमूल-चूल परिवर्तन तथा उनसे समीकरण एवं विषमीकरण की प्रवृत्तियाँ परिलक्षित होती हैं। यथा- मउड मुकुल (1/14/2), पोग्गल पुद्गल (15/17/9), पुहविःपृथिवी (8/16/11), पोम पद्म (4/10/13), चक्कीरचकी (4/12111), सग्गःस्वर्ग (6/1/13)!
(12) आद्य एवं मध्य व्यंजन-लोप। यथा- थण स्तन (9/12/9), थेरु स्थविर (10/2/6), थिउ<स्थिर (7/3/10), थाणस्थान (15/23/15) सुकेसुया सुकेतुसुता (14/19/4), वायरण(व्याकरण (1/4/4), वणासइ बनस्पति (5/12/3)।
(13) वर्णविपर्यय- यथा— रहस हर्ष (15/12:5), णियलुणिलउ (15/14/7), परिवह परिहद पराभव (14/19/1), दीहरदीर्घ (10/17/12), तिहराहिउ त्रिपुराधिप (2/12/8)।
(14) प्रथमा एवं द्वितीया विभक्तियों के एकवचन में अकारान्त शब्दों के अन्तिम अकार' अथवा संस्कृत-विसर्ग के स्थान में प्राय: 'उकार'। कहीं-कहीं ए का प्रयोग भी मिलता है। यथा— चरिउ चरित (1/5/4), सगुर स्वर्ग: सलिलु सलिल: (15/14/4), संपण्णु सम्पन्न (15/14/13), पंकयणाहें< पंकजनाथम् (13/10/8)।
(15) तृतीया-विभक्ति के एक वचन के अन्त्य 'अकार' के स्थान में ए का प्रयोग एवं कहीं-कहीं एण का प्रयोग। यथा- मिच्छत्ते मिथ्यादृष्टया (15/24/3), बहुत्ते बहुत्तेन (15/24/3), परमेसरेण परमेश्वरेण (5/15/71. संचालणेण<संचालनेन (4/5/13)1
(16) तृतीया के बहुवचन में अन्त्य 'अकार' के स्थान पर एहिं प्रत्यय । यथा— सव्वेहि सर्वैः (5/15/12), भव्बेहि भव्यैः (5/15/12), मुहेहि मुखैः (5/15/12), णंदणेहि नन्दनै: (2/16/3)।
(17) अकारान्त शब्दों में पंचमी विभक्ति के एकवचन में हो' प्रत्यय तथा बहुवचन में हं अथवा हिं प्रत्यय । यथा-.- तहो तस्मात् (4/4/11), जंबुदीवहं जम्बूद्वीपात् (4/2/1)।
(18) अकारान्त शब्दों से पर में आने वाले षष्ठी के एकवचन में आसु प्रत्यय एवं बहुवचन में हँ प्रत्यय का प्रयोग। यथा— सुंदरासुरसुन्दरस्य (1/13/9), पुरंदरासुरपुरन्दरस्य (1/13/9), मणहराहँ<मनोहराणम् (1/9/3), पउहराह पयोधराणाम् (1/9/3)।
(19) स्त्री लिंग के शब्दों में पंचमी और षष्ठी के एकवचन में 'है' का प्रयोग। यथा— जाहेजस्था. (4/3/15), ताहे<तस्या: (2/10/4)।
(20) क्रिया रूपों के प्रयोग ब्राय: प्राकृत के समान हैं। पर कुछ ऐसे क्रियारूप भी हैं, जो कि विकसित भारतीय भाषाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं और जिनसे आधुनिक भाषाओं की कड़ी जोड़ी जा सकती है। यथा-- ढोइउ (बुन्देली)
ले जाने के अर्थ में (11/21/2)
होने के अर्थ में (11/13/8) आयउ
आने के अर्थ में (14/4/10) बट्टियउ (भोजपुरी-वडुए)
होने के अर्थ में (10/10/9) पुच्छिउ
पूछने के अर्थ में (5/16/2) अच्छइ (मैथिली छी, मगही त्थी)
है के अर्थ में (10/17/8)
हुवउ