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प्रस्तावना
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हुआ है (इस सन्धि में कड़वकों की कुल संख्या 14 है)। इसी प्रकार 11वीं सन्धि का प्रत्येक कड़वक गाहा-छन्द से प्रारम्भ हुआ है (कवकों की कुल संख्या 23 ) । यद्यपि ये प्राकृत पद्य आनुषंगिक हैं, फिर भी सोने की अंगूठी में जड़े हुए नग के समान वे काव्य-सौन्दर्य को बढ़ाने में सक्षम हैं।
पच की मूल भाषा अपभ्रंश है। उसका संक्षिप्त अध्ययन यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है:
पज्जुण्णचरिउ में अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ओ, अनुस्वार एवं अनुनासिक स्वरों के प्रयोग मिलते हैं तथा व्यंजनों में क्, ख्, गु, घ् च् छ् ज् झ् ट् ठ् ड् ढ् ण् त् थ् द् ध् न्, प्, फ् ब् भ् म्, य्, र्, ल्, व्. स् के प्रयोग मिलते हैं।
स्वर वर्ण विकार
(1) संस्कृत की ॠ ध्वनि के स्थान पर पज्जुण्णचरित्र' में अ इ उ ए एवं रि के प्रयोग मिलते हैं। यथाकय < कृत् (3/9/14), किण्ह कृष्ण ( 10/10/3 ) टिडु नृत्य ( 3 / 1 /11), निण-घृणा (5/1/20), पुहवि पृथिवी (8/16/11), गेहु गृह (5/9/6), रिद्धिजण ऋद्धिंजण 3/7/4 1
12) ऐ के स्थान पर एअर एवं इकेन यथा - वेयाल वैताल ( 1/16/ 10), नेरिउ<नैऋत्य (15/ 7/1 ), वेयड्ढ वैताढ्य (2/3/6), वेरि-वैरी (3/15/7), कइलासो - कैलाश ( 15/5/8 ), कइडिछु कैटभ ( 6/1/1) इरिय बैरी (5/2/3), चित्त चैत्र ( 15 / 5 / 1 ), वइवसपुरि वैवसपुरि (13/14/8), तइलोउ < त्रैलोक्य (4/14/8) ।
(3) 'औ' ध्वनि के स्थान पर 'अरे' एवं 'अउ' । यथा— कोसल कौशल (5/11/5), गोरी-गौरी (2/11/3), सोहयल - सौधतल (1/12/5), सउ सौ (2/19/12), गउड-गोड (6/3/12) ।
(4) ङ्, ण, न् एवं म् के स्थान पर अनुस्वार। जैसे— पंक पड्क ( 9/5/8), चंद्रायण चान्द्रायण (9/11/5), अरिंजय < अरिञ्जय (5/11/6 ) ससंक - शशाङ्क ( 15/7/8), संयंयह स्वयम्प्रभा (14/8/9 ), सयंभूरमण स्वयम्भूरमण ( 14/8/9 ) ।
(5) स्वरों का आदि, मध्य एवं अन्त्यस्थान में आगम । यथा... पियारी-प्यारी (9/5/13), दुवार द्वार (7/3/5), विवसग्गु व्युत्सर्ग (5/5/5), किवाण कृपाण (13/12/11), सलि-शल्य (15/5/6), सरय शरद् (15/4/8) (6) आद्यस्वर लोप । यथा छइ अछह ( 15/28/8), गं अगंग (15/4/1 ) ।
व्यंजन वर्ण-विकार
(7) 'रकार' के स्थान में क्वचित् 'लकार' । यथा— चलण चरण ( 12/1/13), कलुण- करुण ( 10/13/11), (यह अर्धमागधी प्राकृत की प्रवृत्ति है ) ।
(8) श्, ष् एवं स् के स्थान में 'स' होता है। कहीं-कहीं बू के स्थान में 'छ' भी होता है। यथा—सत्तिशक्ति (2/11/4), साहाशाखा (4 / 1/3), पलासु पलाश ( 16:9), सालि-शालि ( 1/7/4), छट्ठि<षष्ठि (3/13/11), छट्ठोववासोपवस ( 15/10/15), छप्पय षट्पद ( 3/4/8)।
(9) 'स' के स्थान पर क्वचित् 'ह' तथा संयुक्त त्स एवं प्स के स्थान पर च्छ। जैसे— दहलक्खण दसलक्षण (5/15/5), दहवयणु-दसवणु ( 1/10/10), उच्छव उत्सव (15/8/7), अच्छरा <अप्सरा (2/4/4 ) ।
(10) ध्वनि परिवर्तन में वर्ण परिवर्तन कर देने पर भी मात्राओं की संख्या प्रायः समान। यथा— धम्म< धर्म (15/13/12), कम्म<कर्म (9/11/7), णिम्महि-निर्मम (14/16/13), अप्पा - आत्मा (1/10/12), सोमसम्मु सोमशर्मा