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काइँ घुसिणें अंजिय याइँ
कहुँ विहिंभु चालिउडले
प्रस्तावना
सो भुल्ल पर परतियहिं केव राहव-घरिणिहिं दहवयणु जेम । – 1 / 10/10
सागर दिन-रात द्वारिका नगरी की सेवा में लीन रहकर नदियों को उसी प्रकार भूल गया था, जिस प्रकार दशमुख (रावण) राघव-गृहिणी सीता के कारण अपनी गृहणियों को भूल गया था । यहाँ सामान्य का विशेष से समर्थन किया गया है ।
असंगति:- कारण एक जगह हो और कार्य दूसरी जगह, तो वहाँ असंगति अलंकार होता है। कवि ने कृष्ण का अवलोकन करते समय द्वारका की नारियों को अस्त-व्यस्त रूप में चित्रित कर असंगति अलंकार की सुन्दर योजना की है। यथा—
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अंजणेण पीयल पुणु वयणइँ ।
सिरु विवरीउ करिवि पथउर उरयले । -3/2
व्यतिरेक:- जहाँ उपमान की अपेक्षा उपमेय के गुणाधिक्य वर्णन द्वारा कथन में उत्कर्ष उत्पन्न किया जाए, वहाँ व्यतिरेकालंकर होता है। महाकवि सिंह प०च० में रुक्मिणी एवं सत्यभामा के गर्भावस्था वर्णन प्रसंग मे इस अलंकार का प्रयोग करते हुए कहा है कि एक का कण्ठ शंख को जीतने वाला था तो एक का रूप जगत को जीतने वाला था । यथा— एक्कहे वरकंठु कंबु हणइँ अणेक्कहे रूउ जि जगु जिणहैं । - 3/11/4
सहोक्ति:जब सह अर्थ बोधक (संग, साथ, सह तथा इनके अन्य पर्याय वाचक) शब्दों के बल पर एक ही क्रिया-पद दो अर्थों का बोध कराता है तब सहोक्ति अलंकार होता है। सत्यभामा रुक्मिणी से सौलियाडाह रखती है, किन्तु कृष्ण के उपहास करने पर वह रूपिणी के साथ अपनी छोटी बहिन का सम्बन्ध स्थापित करके कृष्ण को ही धिक्कारने लगती है। यथा—
रूविणि वि मज्जु सा सस कणिट्ठ उग्गालु सु तहे तुह काई छिट्ठ ।
ज लावि तो महु णत्थि दोसु स सहोयराइँ सहुँ कवणु रोसु ।। – 3/6/8-9 (5) बिम्ब-योजना
बिम्ब-योजना में किसी वस्तु का सर्वांगीण वर्णन न कर मात्र उस वस्तु के भाव चित्र को इस रूप में उपस्थित किया जाता है कि वह (चित्र) पाठकों के हृदय - पटल पर अपना अमिट प्रभाव छोड़ता चलता है। यह परिभाषा देते हुए डॉ० नगेन्द्र के ये विचार स्मरणीय हैं --- काव्य- बिम्ब शब्दार्थ के माध्यम से कल्पना द्वारा निर्मित एक ऐसी मानस - छवि है, जिसके मूल में भाव की प्रेरणा रहती है।
!. काव्य-विम्ब, पृ05 (नेछनल पब्लिशिग हाल दिल्ली, 198657)।
इस प्रकार की बिम्ब - योजना प०च० में अनेक स्थलों पर उपलब्ध है। उनमें से कुछ उदाहरण यहाँ प्रस्तुत किए जा रहे हैं—
1.
प०च० में राजा मधु का नख-शिख वर्णन न करके कवि ने उसकी तेजस्विता और वीरता के वर्णन द्वारा एक भावात्मक - बिम्ब उपस्थित किया है। – (6/14-15}
2. रुक्मिणी एवं रति का नख-शिख वर्णन, विषयगत होते हुए भी पाठक पर अपना अमिट प्रभाव छोड़ता है – (2/10, 8/16, 12/1 देखें) 1
3. गर्भवती माता की दिन-प्रतिदिन परिवर्तित हुई दशा का यथार्थ - बिम्ब | - (दिखें 3/11-12 )