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महाकई सिंह विरळ पज्जुण्णधरिज
जो संवरहो वाह कट्ठिवि ठिय भिडिवि रणगंणे तेण विणिज्जिय । पज्जुण्णकुमारहो रणे दुव्वारहो संख-कुदे हर-हासे कसु ।
वियरंत मुणेविणु मणे विहसेविणु राय' णियणंदणहो जसु ।। -7114 इसी प्रकार 8वीं सन्धि के प्रथम 16 कडवकों के वर्णन-प्रसंगों में भी कवि ने इस अलंकार का खुलकर प्रयोग किया है।
वपादोक्ति:.. स्वाभाविक टार्णन-प्रसंगों में इसी अलंकार का प्रयोग होता है। कवि ने रुक्मिणी एवं सत्यभामा की गर्भ-दशा का चित्रण उक्त अलंकार के माध्यम से किया है। यथागब्भेहि सुंदरीहिमि
जायाइमि सालसंगा। शंदण जसेण वियसइ
ईसीसिवि जाइ धवलाइँ। अइतुग-पीण-पीवर-यणाह
कसणइं मुहाइँ दुज्जण थणाहं । -3/12-13 इसी प्रकार प्रद्युम्न की बाल चेष्टाओं का स्वाभाविक वर्णन किया गया है। यथा
थिउ दिणमेक्क मेत्तुं विरय वि तणु पा उवयाचलत्थु 'मय लंछणु । पुणु मासद्ध-मास कय संखइँ भीसम-सुय पहिट्ठमण पेक्खइँ। संवच्छरहं सुअद्ध पमाणिउं णिम्मिउ वउ कलहोय समाणउं ।
णिय लीलइँ रंगेविणु थक्कइ ईसीसु-विहसेवि मुहुँ वंकइ। --12/15 निदर्शना:- जहाँ उपमेय का उदाहरण अनेक उपमानों से दिया जाय, वहाँ निदर्शना अलंकार होता है। बालक प्रद्युम्न की अभिवृद्धि में इस अलंकार की योजना की गयी है। यथा
सो बालु पज्जुण्ण घरे कालसंवरहो वड्ढइ व ससि कलह कलु जेम अंबर हो ।
उत्तुंग-घण-कढिण-पीड थणालाण हत्थे-हत्थेवि संवरेइ वालाण ।। -7/12 परिसंख्या:- जब किसी वस्तु का अन्य स्थलों से निषेध करके केवल एक स्थान पर ही कथन किया जाए तो परिसंख्या-अलंकार होता है। कवि ने द्वारावती का वर्णन करते समय इस अलंकार की योजना की है। यथाजहिं कव्व बंधु विग्गहु सरीरु
धम्माणुरत्तु जण पावभीरु। थट्टत्तणु मलणु वि मणहराहँ
वर तरुणिहिं पीण पओहराहूँ । हय हिंसुण राय णिहेलणेसु
खलु विगय णेहु तिल पीलणेसु । मज्झण्णयाले गुणगणहु राह
परयार-गमण जहि मणिवराह।। -119 विभावना: - बिना कारण के जहाँ कार्य की उत्पत्ति का निर्देश किया जाए वहाँ विभावना-अलंकार आता है। प०च० में मुनिराज के आगमन के अवसर पर योग्य ऋतुओं के न रहने पर भी उनके प्रभाव से समस्त वनस्पतियों में ऋतु योग्य फल फूल आ जाने के कारण उसमें उक्त अलंकार की योजना की गयी है। यथा- ता वणवालइँ कुसुमफल
उडुरिहिं जे उपज्जहिं विमल । संजायउ जिणवर आगमणु
फल कुसुमाउलु संपण्णु वणु।। -5/13. 15:14 अर्थान्तरन्यास:- किसी माधर्म्य अथवा वैधर्म्य का प्रदर्शन करने के लिए जब सामान्य का विशेष से अथवा विशेष का सामान्य से समर्थन किया जाए तब वहाँ अर्थान्तरन्यास अलंकार होता है । कवि ने समुद्र के वर्णन-प्रसंग में इसका सुन्दर निरूपण किया है— यथा—