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महाकह सिंह विरहउ पज्जुण्णचरिउ
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इय पज्जुण्ण-कहाए पयडिय-धम्मत्थ-काम-मोक्खाए बुह रल्हण-सुअ कइ सीह-विरइयाए पण-संवु-भाणु-अणिरुद्ध णिव्वाण-गभणं णाम पण्णारहमी संधी परिसमत्तो।। संधीः ।। 15 ।। छ।।
अन्त्य प्रशस्ति 'अ' प्रति
कृत्तं कल्मषवृक्षस्याशा अंश अंसु धीमता। सिंहेन सिंहभूतेन पाप-सामल भंजनं ।। 1 ।। कामस्य कामं कमनीयवृत्तेर्वृत्तं कृतं कीर्तिमतां कवीनां । भव्येन सिंहेन कवित्वभाजं लाभाय तस्यात्र सचैव कीर्ते: ।। 2 ।। सब्बभू सव्वदस्सी भववणदहणो सव्य मारस्स मारो, सव्वाणं भज्जयाणं समयमणयहो सव्वलोयाण सामी। सब्बेसुं वत्थुरूवं पपडण-कुसली सव्वणाणावलाई, सव्वेहिं भूअयाणं करुणचिरघणो सव्वयालं जएसो।। 3 ।। जं देवं देव देवं अइसय-सहिदं अंगदारातिहतं, सुद्ध सिद्धीहरत्थं कलिमलरहिंदं ताव भावाणुमुक्कं ।
णाणायारं अणंत वसु-गुण-गुणिणं अंसहीणं सुणिच्चं इस प्रकार बुध रल्हण के सुत कवि सिंह द्वारा विरचित धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष को प्रकट करने वाली प्रद्युम्न, शम्बु, भानु एवं अनिरुद्ध के निर्वाण गमन से सम्बन्ध रखने वाली पन्द्रहवीं सन्धि समाप्त हुई।। सन्धि : 15।। छ।।
अन्त्य-प्रशस्ति 'अ०' प्रति सूर्य के समान तेजस्वी एवं बृहस्पति के समान प्रखर प्रतिभावान् तथा सिंह वृत्ति वाले (महाकवि-) सिंह ने (प्रद्युम्न-चरित) की रचना कर कल्मष रूपी वृक्ष का कर्तन कर पाप की श्यामता का भंजन किया है।। 1।।
काव्य-प्रणयन की क्षमता-शक्ति वाले भव्य कवि सिंह ने रुचिर-काव्य शैली में उस प्रद्युम्न के सुन्दर चरित की रचना, कीर्तिलब्ध कवियों के हितार्थ, उस (चरित) की कीर्ति के प्रसार हेतु, की है।। 2 ।।
पृथ्वी के समस्त प्राणियों का हितकारी, भव-वन का दाहक, सभी प्रकार की विषय-वासनाओं को नष्ट करने वाला, समस्त भव्य-जनों के मन को शास्त्रों में लगाने वाला, समस्त लोगों का स्वामी, सभी प्राणियों में वस्तु-स्वरूप को प्रकट कर सकने में कुशल, अपने ज्ञान से सभी का अवलोकन करने वाला समस्त प्राणियों पर सभी कालों में सदैव अत्यन्त करुणा करने वाला वह प्रद्युम्न जगत में जयवन्त रहे।। 3 ।।
जो देव देवत्व प्रदान करता है, जो अतिशयों से युक्त है. जो अंगद्वार (द्वादशांग-वाणी) का स्वामी है, अष्टकर्मों का हन्ता है, शुद्धात्म है, सिद्धियों का गृह है, कलिकाल के मल से रहित है, संसार के भव रूपी ताप से मुक्त है, ज्ञान की मूर्ति है, अनन्तवीर्य वाला है, अष्टगुणों से मुक्त है, नित्य है, ऐसा वह (प्रद्युम्न) देव हमारे लिए संसार