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________________ 15.24.10] महाकद सिंह विराउ पज्जपणचरित [337 25 अणुविक्खउ चिंतति कयायर रयणालय रेहिहिं णं सायर । तिय-गुत्तिहिमि सुत्त सुमहुरझुणि थिय उवसमपए एम महामुणि । घत्ता-- अक्खीण महाणस सिद्धियर सव्वंगह सव्वोसहि । णाणत्तय मंडिउ मयणु मुणि तव जम-नियमालद्धहि ।। 303 ।। (24) दुबई— चउविहु धम्म-झाणु झाएवि अणंताणत वंधणा। तोडेवि कोहु-लोह-माणु वि हय माया-पास मियमणं ।। छ।। सम्मत्तेण तहद मिच्छतें सम्मा-मिच्छतेण बहुत्तें। एपहं पयडिहिं सत्तहिं जामहिं कयउ विसोहणु सहसा तामहि । चडिउ अउच्च करणि संजम धर चउदह-पुव्वहं वारंगहं हरु। उवसम पहु आसंघिवि दुहहरु । खवय-सेणि आरूढउ जइवरु । थिउ अलमंतरम्मि वावारए लग्गउ सुक्क-झाणि पहिलारए। पिहियंक्क विविपक्क अहिहाण नारय-सुर-तिरियाउ पमाण। खविवि तित्थ अणियठ्ठि पराइड तहिं छत्तीस-कम्म वलु घाइउ। कर विभाय णव तं गुणथाणु वि पहिलाए सोलह पयडिय पवाणु वि । 10 मानों रत्नाकर समुद्र ही हों। तीन गुप्तियों से युक्त थे। सुमधुर ध्वनि से सूत्र-पाठ करते थे। इस प्रकार वे महामुनि उपदेश पद में स्थित थे। घत्ता- अक्षीण महानस तथा सर्वोषधियों से सर्वांग को सिद्ध करने वाले एवं तप-यम-नियमों को प्राप्त वे मदन-महामुनि ज्ञानत्रय से मण्डित हो गये।। 303 ।। (24) घोर तपश्चरणकर प्रद्युम्न ने कर्म-प्रकृतियों को नष्ट कर दिया द्विपदी- चतुर्विध धर्मध्यानों का ध्यानकर अनन्तानन्त बन्धनों को तोड़कर क्रोध, लोभ एवं मान को नष्ट कर मायापाश का नियमन कर दिया।। छ।। मिथ्यात्व, सम्यक्त्व-मिथ्यात्व एवं सम्यक्त्व प्रकृतियों का जब उदय हुआ तभी सहसा ही उनका वियोधन भी कर दिया। उसी समय चौदह पूर्वो एवं 12 अंगों का धारी वह प्रद्युम्न अपूर्वकरण गुणस्थान में चढ़ा। पुनः वह दुःखहारी यतिवर प्रभु उपशम श्रेणी में चढ़कर क्षपक श्रेणी में आरूढ़ हुआ। आभ्यन्तर-काल में वह बारहवें गुणस्थान में रुका तथा प्रथम पृथक्त्ववितर्क नामक शुक्ल ध्यान में लग गया। वह नरक, देव एवं तिर्यंचगति को खपा कर वहाँ से अनिवृत्तिकरण गुणस्थान में जा पहुँचा और वहाँ उसने बलवान 36 कर्मप्रकृतियों का घात किया। पुनः प्रकृतियों का विभाग कर नौवें गुणस्थान में जाकर 16 कर्म प्रकृतियों को नष्ट किया। पुन: निद्रा, निद्रा-निद्रा,
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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