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________________ 'हाविसउ पज्जुण्णचरित [335 गणवद्ध सुरह रक्खिज्जमाणु को पावइ तहो रज्जाहिहाणु। पत्ता- एत्तहिं ते पंच वल्ल मुणि सत्तसएहिं जइहिं सहविसरिसु। वारहविहु-तउ दुद्धरु चरहिं करहिं देउ तह कम्म किसु ।। 302 ।। (23) दुवई- वरिसद्धद्ध मास पक्खेसु व छठ्ठट्ठम णिऊयणं । णव-कोडिहिं विसुद्ध मल-वज्जिउ विरसु' असंति भोयणं ।। छ।। लाहालाह सुहेसु-दुहेसु वि कच्च-कणय जीविय-मरणेसु वि। सम मण-वघण'-काएँ संजय चवहिं धम्मु अहमउ गइँ जिय भय । पिहियास"व-जोगत्तय-गारव समिय कसाय सु मारहो मारन । छह अणायतण संग-विवज्जिय मय मूढत्तय सहुँ ण समज्जिय। संकाइय अठ-दोस ण पावण दसणु विमलु करेविणु भाव | णिण्णासिय सण्णा सल्लत्तय 'मुणिय समिदिवि गिवि आसाहय । पंचायार गामि महिमा मह मुक्क पमाय इंदिय विसयं सह । गणबद्ध देवों द्वारा रक्षित उस वासुदेव की समृद्धि को कौन पा सकता है? पत्ता- वे पांचों नवीन मुनि 700 असाधारण मुनियों के साथ दुर्द्धर बारह प्रकार के तप करने लगे और वे देवोपम यति-गण भी कर्मों को कृश करने लगे ।। 302 ।। (23) प्रद्युम्न को ज्ञानत्रय की प्राप्ति द्विपदी— वर्ष, अर्ध-वर्ष, मास, अर्ध-मास तथा पर्यों में छठा (षष्ठ), अष्टम तप धारणकर नवकोटि से विशुद्ध, __ निर्दोष, नीरस भोजन (आहार) लेते थे।। छ।। लाभ अथवा अलाभ में, सुख अथवा दुःख में, काच अथवा कंचन की प्राप्ति में और जीवन अथवा मरण के समय वह निर्भीक प्रद्यम्न मन. वचन तथा काय से समभाव पूर्वक या तो धर्म का उपदेश करते थे अथवा मौन पूर्वक रहते थे। योगत्रय तथा त्रिविध गारव (ऋद्धि रस सात) से होने वाले आश्रव का निरोध करते थे, कषायों का उपशम तथा कामबाण को नष्ट करने वाले थे। छह अनायतनों तथा परिग्रह से रहित थे। 8 मद और 3 मूढ़ताओं का साथ नहीं करते थे। उनमें शंकादि आठ दोष नहीं पाये जाते थे। दर्शन को निर्मल कर भावना भाते थे। चार संज्ञाओं तथा तीन झाल्यों को नष्ट कर तथा आशा-तृष्णा से रहित होकर अपनी समिति का मनन करते थे। महिमायुक्त पाँच आधार पालते थे, 15 प्रकार के प्रमोदों तथा पंचेन्द्रिय विषयों से मुक्त थे। सात भयों (22) 44) असदृश । (231ोकसायाश्रवरहित । (23) 1. अ. सत्सु। 2.८ सु।
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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