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द्विपदी
महाकद सिंह विरइज पज्जुण्णचरिंउ
जंपइ वच्छ-वच्छ कुडिलालय सुवह हंस तुलेमु सकोमले तुव रुच्चहिं सुवच्छ वरभूसण घिउ मालपाण वलु चिंतवउ सजलो ल्लिय - णयणइँ गरिंगर - गिल चव पुणु वि पुणु पउभ कयग्गहु हम-गम-रह- सकोस कण दाइणि करहि रज्जु वारवइ परिट्टिउ जूर हे णीससंति जायव- वहु
घत्ता — इथ सोय महारसु पसरिउ अंगे ण माझ्उ मणस्सिय सथणहँ ।
कि उम्मूलय सहिसा आलय । कह णिसि वालरु गमि सियलायले । कहवि सहीसि परीसह भीरूण । विवरीयउ जि दइउ संपत्तउ । सुव विजय भई वसु कंपउ णिरु । तुह आणायरु सयलु परिग्गहु । लइ परणलि सयल रमेईणि । हउं अछमि अंतर संठिउ । रेहहिं णं ससि बिरहिउ णिसिहु ।
मिं'डर वरं ताहँ झत्ति वणिग्गउ पयलवि णयहँ ।। 300 ।। (21)
मणु रामु ( 1 ) - मुरारि (2? परियणं? । भीम - सुन जंपि वज्जहिय इणं । । छ।।
दुबई— अवलोएवि एम त्रिम सुक्कलया (4)
वह (रोकर ) चिल्लाने लगी कि हे वत्स, कुटिल केश हे वत्स, तू सहसा ही अपने अलक कैसे उखाड़ेगा ? यहाँ तो तू हंस के समान शुभ्र एवं सुकोमल गद्दों पर सोता है, अब तू शिलाओं पर अपने दिन-रात कैसे व्यतीत करेगा ? हे सुवत्स, तुझे तो उत्तम - उत्तम आभूषण रुचते हैं, तब भीषण परीषह कैसे सहेगा? म्लान मुख बलदेव चिन्तित हो उठे और सोचने लगे कि अब भाग्य विपरीत हो गया है। उनके नेत्र जल से चंचल हो उठे, कण्ठ रुँध गया । पुत्र-वियोग से वासुदेव (कृष्ण) भी काँपने लगे। वे पुनः पुनः बोलने लगे- "तुम सुकृती जनों में अग्रणी हो, समस्त परिवार तुम्हार। आज्ञाकारी है। अत: घोड़ा, हाथी, रथ, कोण सहित अन्नकण देने वाली समस्त पृथिवी का पालन करो। द्वारिकापुरी में रह कर राज्य करो। मैं अन्तःपुर में स्थित रहूँगा । यादव वधुएँ (प्रद्युम्न की रानियाँ ) झूरने लगीं, दीर्घ निश्वासें लेने लगीं। वे उसी प्रकार निष्प्रभ गयीं, जिस प्रकार चन्द्रविहीन रात्रियाँ ।
घत्तः—
इस प्रकार शौक रूपी महारस ऐसा फैला कि वह मनसिज के स्वजनों के अंगों में नहीं समाया । बलवान भट - श्रेष्ठों का भी तत्काल दमन करने वाले कृष्णा- बलदेव के नेत्रों से अश्रु- प्रवाहित होने लगा । 300 ।।
(20) 1-2. अ. पंचरंतघरंत । 3. अ. नि ।
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शम्बु, अनिरुद्ध, भानु, सुभानु के साथ-साथ सत्यभामा एवं रूपिणी आदि भी अपनी बहुओं के साथ दीक्षित हो जाती हैं
इस प्रकार विवर्ण ( उदास चित्त) बलभद्र, मुरारी (कृष्ण) तथा परिजनों एवं सूखी हुई लता के समान भीषम - पुत्री - रूपिणी को देखकर वज्र - हृदय – इन्द्र ने कहा । । छ।।
(21) (1) भद्रे (2) रामाविष्णु (3) परिवाफ (4) र मन (5) पुधेन इन्द्रे