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________________ 15.18.161 महाफड सिंह विराउ फन्जुण्णचरिउ [329 जह बज्झइ सिज्झइ जीव दव्यु संभवइ पाउ जिह पुण्णु सव्वु । जं सुहुमु थूलु णाणहँ शिउत्तु मणुसोत्तर गिरि वलइय विचितु। पर दीवड्हाइय मेरु पंध पण्णारह-कम्भ महीहिं संच। गिरि तीस स सरवर कमल तीस तेत्तियउ भोय-भूमिउँ महीस । ताज जि छण्णवह कुमेइ गीउ सत्तरि सुमहाजल-वाहिणीउ । खेत्तंतर खेयर-माणवाह । णिद्देसिय संख करेवि ताहँ। ईरिय ससमुद्द वि दीव ताम छेइल्लु सयंभू-रमणु जाम। णारय-सुर खयउ छेउ आउ सुहु-दुहु अणंतु भावाणुभाउ । पुणु भासिय भव सयलहं सभेय हरि-हलि दसार पमुहहँ अणेय | ता पणवेवि गुरु-पय पंकया सथलहँ गहियाइँ अणुब्बयाईं। विमलइँ गुणवय-सिक्खावयाहँ भोगोपभोगमाण कयाहँ। ___घत्ता..... विहसिवि सविणय वयणइ वलेण) पयंपिउ परम मुणि । संसार महाविसि” वसहरेण बिसयकह सिहि समणि सुणि।। 298 ।। 15 प्रकार सभी जीव द्रव्य बँधते कर्मों से बँधते और सिद्ध होते है, जिस प्रकार पुण्य और पाप को प्राप्त होते हैं। ज्ञानियों ने जो स्थूल एवं सूक्ष्म जीवों का कथन किया है, जो कि विचित्र मानुषोत्तर पर्वत वलय में रहते हैं। हे नरेन्द्र, अढाई द्वीप, पंचमेरु, पन्द्रह कर्म-भूमि और तीस पर्वत, कमल सहित सरोवर तीस एवं हे महीश, उतनी ही भोगभूमियाँ हैं। उसी प्रकार 96 कुभोगभूमियाँ, 70 महाजलवाली नदियाँ, क्षेत्रान्तर के खेचर मनुष्यों की भी निर्दिष्ट संख्या जानो। ऐसे द्वीप, समुद्र असंख्यात जानना चाहिये। अन्त में स्वयम्भूरमण समुद्र है। नारकी और देवों की आयु का छेद नहीं है (आयु का अन्त आता है)। अनन्त दुःख-सुख भावों के अनुसार होते हैं। पुन: उन नेमिप्रभु ने हरि, हलधर तथा दसार आदि अनेक प्रमुख राजाओं के सभी जन्म-जन्मान्तरों के भवों को कह सुनाया। तत्पश्चात् गुरुवर (नेमिप्रभु) के चरण-कमलों में प्रणाम कर उन्होंने अणुव्रत, निर्मल गुणव्रत तथा शिक्षाव्रत धारण कर लिये तथा उसी समय से भोगोपभोगों की सीमाएँ निधिचत कर ली। घत्ता- बलभद्र ने भी हँसकर विनम्र वाणी में परममुनि (नेमिप्रभु) से प्रश्न किये। तब गणधर ने उत्तर में कहा—"हे श्रमण सुनो। यह संसार महाघने जंगल के समान है, जिसमें पंचेन्द्रिय रूपी महासर्प निवास करते हैं, और जहाँ विषय-वासना रूपी काष्ठ की ज्वाला जलती रहती है।। 298 ।। (IN) (1) प्रना । (2) बलभद्रेन । (3) सप्प।
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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