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15.17.11]
महाका सिंठ विरळ पन्जुण्णचरिउ
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धत्ता . . जइ णिच्चु जि तइ णिक्किरि उ उ संभवद् अणिच्चहो सिव सुहु ।
पज्जाए। अणिच्धु थिउ दब्वइँ णिच्चु राय जाणहिं तुहु ।। 296 ।।
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दुबई— णिच्चाणिच्चु एम आहिंडइ चउगइ गहण णिस्समो।
खय भय तसिङ सुसिउ पुणु णिवडइ जमहरेणाहिबक्कमो।। छ।। चउरासी लक्खहँ जोणि-वासु वियरतहो वड्ढइ कम्मपासु । इल-जल-सिव्हि-सिमिर वण'वकाए चवदस सु भूव गामंतराए। लक्खिज्जइ जिउ मग्गण गुणेण चउसण्णा-चउविह-दसणेण । चउगइ-कसाय चउविह-विहाणे भब्वेण दुविह-संजम पहाणे। पंचेदिएहि सम्मत्त-तिविहि
णाणट्ठइँ-लेसा भेएँ छविहि। जोएण तिविह भेएण-सहिय
आहार छह-भेएण कहिय। चर-अचर-सयल-भासंति णाणि
पोग्गलउदुमाणइँ किण्ह जाणि । अवरु वि अगेय-अविणास-दव्व थिय पूरिवि लोयालोउ सव्व ।
जह णइ पवाहु मीणहो हवेइ) रुभइ ण जंत थिउ ण वणेइ। घत्ता- पदि वह जीव-आत्मा नित्य हो तब वह निष्क्रिय हो जायगी। यदि उसे अनित्य मानों तब शिव-- .
मोक्ष-सुख की प्राप्ति सम्भव नहीं होगी। हाँ, हे राजन, वह पर्याय से अनित्य है एवं द्रव्य से नित्य ऐसा जानो।। 296।।
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जीव-स्वरूप एवं प्रकार-वर्णन द्विपदी- इसप्रकार द्रव्य एवं पर्याय की दृष्टि से नित्य एवं अनित्य यह जीव चारों गतियों में निरन्तर भटकता
रहता है और अपने नाश के भय से दुःखी होता है, सूखता रहता है और पुन: यमराज के पंजों में
पड़ जाता है। ।। छ।। 84 लाख योनियों में निवास करते हुए तथा उनमें विचरते हुए इस जीव का कर्मपाश बढ़ जाता है। पृथिवी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति जीवों के 14 जीवसमास होते हैं। यह जीव 14 मार्गणाओं, 14 गुणस्थानों. 4 संज्ञाओं, चार दर्शन, चार मतियों, 4 प्रकार की कषायों से जाने जाते हैं। प्रधान भव्य जीव दो प्रकार के संयम से जाने जाते हैं। साथ ही वे 5 इन्द्रियों, 3 प्रकार के सम्यक्त्वों, 8 प्रकार के ज्ञानों, 6 प्रकार की लेश्याओं, तीन प्रकार के योगों सहित
प्रकार के कहे गये आहारों द्वारा देखे जाने जाते हैं। ज्ञानी-जीव के ज्ञान में समस्त चर-अचर द्रव्य भासते हैं। हे कृष्ण, पुद्गल दो भेद वाला जानो, और भी अनेक अविनाशी द्रव्य हैं। उनसे समस्त लोकालोक पूरा भरा हुआ है। जिस प्रकार नदी का जल-प्रवाह मीन के चलने में सहायक होता है, जाते हुए को रोकता नहीं, ठहरे हुए को चलाता नहीं, जो गमन करने में सहायक होता है वह धर्म द्रव्य कहलाता है। इसी प्रकार (जीवों
(16) (6) त्रिगरहित। (17) 1. अ. बगडिपउँ: 2.. वे।
(17) (1) गतिषु । (2) प्रवादकत्तां।