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________________ प्रस्तावना [45 किया है। उसके अनुसार युवतियाँ कृष्ण को आया हुअा देखकर आत्मविस्मृत हो गयीं। किसी ने ताम्बूल के स्थान पर आमलों को मुख में डाल लिया, किसीने घिसे हुए चन्दन को नेत्रों में आँज लिया और अंजन को मुख पर लेप लिया। किसी ने रोते हुए शिशु को पैर ऊपर एवं सिर नीचा कर गोद में ले लिया और उनके पैरों को स्तन-पान करने लगी (3/2)। इसी प्रकार प्रद्युम्न के द्वारका-प्रवेश के समय नारियाँ काम से विह्वल हो उठती हैं। उनका काम ज्वर बढ़ जाता है (13/17/1-2)। यहाँ दर्शन-जन्य-पूर्वराग नामक शृंगार-रस है। __ इसन्त ऋतु का आगमन होता है, नागरिकों के जोडे उद्यान-कीड़ा के निमित्त निकल पड़ते हैं. तत्पश्चात् जलक्रीडा (3/4/7-12, 15/4/8, 15/5/1), आदि करने लगते हैं। इन वर्णनों में संयोग-भंगार की निदर्शना की गयी है। विप्रलम्भ शृंगार:- संयोग-श्रृंगार के साथ ही कवि ने विप्रलम्भ-शृंगार की भी उद्भावना की है। जिस समय राजा मधु वदपुर के राजा कनकरथ (हेमरथ) की रानी को छलपूर्वक अपने राजमहल में रोक लेता है, तब उसके वियोग में कनकरथ पागल होकर गलियों में भटकने लगता है। प्रिया के वियोग में उसकी विपन्नावस्था का वर्णन कवि ने बड़ी मार्मिक-शैली में किया है। वह कहता है-- खणे रुवइ हसइ खणे गेउ करइ खणे पढइ खणे चिंतेतु मरइ । खणे णच्चइ खणे उभाइ धाइ खणे अण्ण कवलु उज्भुन्भु खाइ। खणे लुट्टइ खणे णिय वेसु मुवइ खणे पाय पसारिवि पुणु वि रुवइ । (71116-12} इसी प्रकार राजा मधु कनकप्रभा की प्रचुर आसक्ति एवं उसकी प्राप्ति न होने के कारण विरहाग्नि से संतप्त हो उठता है। शीतलता प्रदान करने वाली सभी वस्तुएँ सन्ताप को वृद्धिंगत ही करती हैं (6/17:9-10)। इस सन्दर्भ में राजा हेमरथ (कनकरथ) की पत्नी आलम्बन है। उद्दीपन वसन्त ऋतु है। अनुभाव हैं मधु की शारीरिक चेष्टाएँ और संचारी हैं - हर्ष, चिन्ता, औत्सुक्य आदि । वीर:- वीर-रस के चित्रण में कवि सिंह का मन अत्यधिक रमा है। क्योंकि उसका युग ही ऐसा था कि देश में चारों ओर युद्धों का वातावरण व्याप्त था। कभी तो हिन्दु राजा परस्पर में राज्य-विस्तार की लिप्सा से आपस में ही भिड़ जाते थे और कभी विदेशी आक्रमणों के कारण उन्हें रण-जौहर दिखलाना पड़ता था। अत: तत्कालीन साहित्य में पुद्ध-प्रसंगों को प्रमुखता प्रदान की गयी। पृथ्वीराज रासो, बीसलदेव रासो, खुमान रासो, परमाल रासो जैसे ग्रन्थों का प्रणयन हुआ। पन्जुण्णचरिउ यद्यपि एक पौराणिक-महाकाव्य है, किन्तु कवि ने पौराणिक पात्रों के माध्यम से भी तत्कालीन युद्ध की झांकियों उसमें प्रस्तुत की हैं और इन प्रसंगों में वीर-रस की सुन्दर उद्भावना की है। __ 'पज्जुण्णचरिउ के कृष्ण एवं शिशुपाल युद्ध (2/16-20), राजा मधु एवं भीम का तुमुल युद्ध (6/14-15), कालसंवर और प्रद्युम्न-युद्ध (9/17-22) प्रद्युम्न तथा कृष्ण का प्रबल युद्ध (12-13 सन्धियाँ) तथा प्रद्युम्न एवं रूपकुमार-युद्ध (14-23) के वर्णन चित्रोपम रूप उपस्थित करते हैं। युद्ध-प्रसंगों के कुछ उदाहरण यहाँ उपस्थित किए जा रहे हैं:सेना की विशालता.... चडाविउ चाउपि सक्क सएहि पिहंतु णहंगणु वज्ज मएहि । जलंपि-थलपि णहंगणु तंपि सो मग्गु-अमग्गु ण पूरिउ जंपि।। ---(13/8/14-15)
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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