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महाकर सिंह विरक पज्जुष्णचरिउ
अवलोइउ जिउ गइयण (2) मागण कालय' जिय अजय सरूदइँ देस - सरूव-काल-अंतरिमइँ ता सुर भुवणहँ णं घण-गज्जिय आरूढउ अइरावइ सुरवइँ
घत्ता - धणएण वि खणें वेउब्वियउ समवसरणु अहो कह । उप्पण्ण भुवज्जोय रे माई आइजि जह || 31 (12)
दुबई— वल्लीवण- असोय परिहा धय गोउर णट्ट सालयं । वर पायार-थंम जिणमंदिर पोक्खर वियसि (1) सालयं ।। छ । । अंजण- तमाल अलि सरिसरुई सित्रगइ णिवासि अइ जासु रुई (2) अवलोइउ अहिहु पुरिस हरि जय जय भातु 'थुणेइ हरि । इणिय कर - साहहिं तुलिउ हरि परिहरिय पुहवि गय रहस हरि ।
अहम उवरि मज्झिम महि महिजण | पज्जत्तापज्जत्तय भूमइँ । सुपयत्थई - अत्थई विष्फुरियइँ । घंटा - संख-पह सय वज्जिय चल्लिउ णिसिवई फणिवइ दिणवइँ ।
का अवलोकन किया। अधम, उर्ध्व एवं मध्य लोक के प्राणियों को जाना। कालत्रय को जाना, पर्याप्त अपर्याप्त रूप जीवों-अजीवों के अनेक स्वरूपों को जाना। देश का स्वरूप जाना, अन्तरित काल को जाना। सुपदार्थों को जाना, उनके अर्थ को विस्फुरित किया। तभी सुर भवनों से मेघनाद हुआ मानों मैघ ही गरजा हो । घंटा, शंख, पटह बिना बजाये स्वयं ही बजने लगे। सुरपति ऐरावत गज पर आरूढ़ होकर चला। निशिपति (चन्द्र), फणिपति ( नागेन्द्र) एवं दिनपति (सूर्य) भी चला।
पत्ता- अपनी विक्रिया ऋद्धि से धनपति ने क्षण भर में ही उन अरहन्त का समवसरण रच दिया। कैसे? जिस प्रकार भुवन को उद्योतित करने वाले केवलज्ञान के उत्पन्न होते ही आदि जिनेश के लिये किया गया था। ।। 291 ।।
(11) 3 अ च । (12) 1. अ. तु
[15.11.9
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कृष्ण नेमिप्रभु के समवशरण में जाकर उनका धर्म-प्रवचन सुनते हैं द्विपदी— वल्लीसमूह, अशोकवृक्ष, परिखा, ध्वज, गोपुर, नाट्यशाला, सुन्दर प्राकार, मान-स्तम्भ, जिनमन्दिर,
पुष्कर और शालाएँ । 1 छ।।
तथा भ्रमर सदृश कान्ति वाले अंजन एवं तमाल वृक्ष विकसित किये गये। शिवगति में रहने की जिनकी रुचि है, ऐसे प्रधान पुरुष नेमिप्रभु के समवसरण को आया हुआ जानकर इन्द्र ने जय जय बोल कर स्तुति की और अपनी - कर शाखा ( अंगुलि ) से हरि को भी तौल लेने वाले नेमिप्रभु को नमस्कार कर वह इन्द्र हर्षित होकर तथा अपना आसन छोड़कर पृथिवी पर गया। उस समय वनों में विचरण करते हुए वे सिंह भी नियमतः स्थिर हो
(11) (2) गुण ।
(12) (1) शोभायमान | 123 रुचि ।