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15.9.12]
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दुबई— ता अवहत्थिऊण सयणोहु सही - वहु सोक्ख कारणं । संचल्लिउ तवस्त्र पहु णेमि कयं सवियारि वारणं । । छ । ।
मठाकर सिंह विरह पज्जुण्णचरिउ
कुरु-पंडव महाभारहे हुए सुर- किण्णर- 'खगवूहहि (2) रक्खिए दुद्धरे मगहाहए दोहाविए (३) फिउ विसिसयणे () सग्रणु सुमहंतइँ पंचयण्णु अवलासुर डावि करसाहए (5) तोलेवि लच्छीहरु पुणु वयर - वह करुणएँ कंपिउ इंदि - सुहु असेसु जा वंचित्रि
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(9) अम"। 2. अगर
हिणिस सेण्णष्णोष्णु रणुज्जए । भिडि भंडणे भडणिवह अलक्खिए । अद्ध चक्किपइ हरिणा पाविए । पासा - सास वसेण तुरंतइँ । चरणंगुइँ चाउ चडाविउ । णं महि भायइँ कलिउ महीहरु ।
पाणिग्गहु करम पर्यापिउ । थिउ णिव्वेइउ रहबर खंचिवि ।
तावागय तर्हि अमर (73 झुणि कुसुमंजलि कर - जुवले घिवेष्पिणु । भो देव-देव जं चिंतवहि तं करेहि जंपति णवेविणु । । 289 ।।
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नेमकुमार को संसार से वैराग्य हो जाता है
द्विपदी - तब मही- पृथिवी रूपी बहुत के लिए सुख का कारण वह प्रद्युम्न स्वजनों की अवहेलना कर तपस्या के स्वामी एवं विकारों के निवारक नेमिप्रभु के समीप तपस्या हेतु चला। छ । ।
कौरवों एवं पाण्डवों का महाभारत ( महासंग्राम) हुआ, रण में उद्यत परस्पर की सेनाओं को नष्ट किया गया। सुर, किन्नर तथा विद्याधर समूह द्वारा रक्षित तथा ( विपक्षियों के ) भट - समूह को देखे बिना ही द्रोही दुर्धर मगधाधिप – जरासन्ध युद्ध में कृष्ण से भिड़ गया। कृष्ण ने उसे मारकर अर्धचक्री पद प्राप्त कर लिया, किन्तु स्वजनों के लिए महान् उसी कृष्ण को नागशैया पर शयन करना पड़ा। श्री नेमिप्रभु ने नासा की श्वास से तुरन्त ही पांचजन्य शंख बजा दिया जिससे असुर भी घबड़ा उठे । पुनः अपने पैर के अँगूठे से ( गांडीव ) धनुष को चढ़ा दिया। इसी प्रकार हाथ की कनिष्ठांगुली से लक्ष्मीधर को तौल डाला। उस समय ऐसा प्रतीत होता था मानों पृथिवी के एक भाग से पर्वत ही जुड़ गया हो। ऐसे ( महान् बलशाली) नेमिप्रभु भी वनचर - पशुओं के वध के कारण करुणा से भरकर काँप उठे। "मैं पाणिग्रहण नहीं करूँगा।" इस प्रकार प्रतिज्ञाकर जो समस्त इन्द्रिय-सुख छोड़कर तथा रथवरादि वैभव का त्यागकर वैराग्य में स्थित हो गये । घत्ता— तभी वहाँ (लौकान्तिक— ) देव आ गये और वे कर-युगल में कुसुमांजलि लेकर तथा नमस्कार कर कहने लगे – हे देव, हे देव, आप जो विचार कर रहे हैं, उसे कीजिए । " ।। 289 ।।
( 9 ) (1) महाभारतसंग्रामे (2) समूह (.3) जरासिंदेह्तेतेि । (4) नागशैयायां । (5) कनिष्ठांगुल्या । (6) ज्ध ( 7 ) लोकांतिक