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________________ 15.4.2] महाकद सिंह यिरइन पज्जुण्णचरिउ [309 ___10 10 सच्छ सीय णिरु सरस मल्लि"यं एण-णा हि परिमल-सभल्लियं । रमण दक्ख रमणी समल्लिधं रइम सट्ट-णीय रसुल्लयं । गमइँ वासरं वर लयाहरे दोलमाण चमराण समाहरे। णालिएर दक्ख रसायणं . सक्कराय-केलाण-पाणयं"। धड्ढ़-दहिय कप्पूरे वाणियं गिंभयम्मि ते णेय माणयं । छूह10) - पंकय तुंग मंदिर अक्खजू विरइय रइ चिरं । रसिय जलय णच्चत्त वरहिणं मेहड़वराणं सुपरिहणं । केलि-कील सीमंतिणी सह गयण वडिय धावंतवि सवह । ललिय-गीय कव्वंति पाइय13) इठ-गोठि जणवय विणोइयं । घसा- धारा कयंव केयइ पवर मालइ स कुसुमरयालइँ। विज्जुज्जलु सुरधणु मंडियए सुहु एरिसु वरिसालइँ।। 283 ।। दुवई- भुवणत्तय जणस्स सुमणोहर सविलासेण सक्कउ''। दाणालीढ करुव रयणं सुज्जोइउ सहइ ए गउ।। छ।। उल्लसित रमण-दक्ष वह प्रद्युम्न रमणियों के साथ मिलकर सटक एवं नृत्य रास रचाने लगा। ग्रीष्म काल में दोलायमान चामरों से मुक्त विमान सदृश उत्तम लतागृहों में दिन व्यतीत करने लगा। नारियल एवं द्राक्षा के रसायन, शर्करा एवं केला के पानक, कर्पूर मिश्चित्त गाढ़े जमे हुए दही का पानी (लस्सी) खूब छक कर पीता था। चूना पुते हुए उन्नत भवन में दीर्घकाल तक वह रतिवर अक्ष-जुआ (चौपड़) खेलता रहता था। फव्वारों की रिमझिम-रिमझिम वर्षा में मेधाडम्बर के समान दिखायी देने वाले मयूरों के नृत्य देखता था । सीमन्तिनियों के साथ केलि-क्रीड़ाएँ करता था, आकाश-मार्ग में दौड़ते हुए (विसवह—) मेघ देखता था, ललित-गीत प्राकृत-काव्य एवं जनपद का विनोद करने वाली इष्ट-गोष्ठियाँ किया करता था। घत्ता- (इसी बीच में) जलधारा के साथ कदम्ब, केतकी, मातती, आदि प्रवर पुष्प-रज- समूह से युक्त तथा स्फुरायमान विद्युत्त एवं इन्द्रधनुष से मण्डित सुखद वर्षाकाल आ गया ।। 283 ।। प्रद्युम्न की शरद एवं हेमन्त ऋतु कालीन विविध-क्रीड़ाएँ द्विपदी- भुवन-त्रय के लिए अत्यन्त मनोहर, विलासों में इन्द्र के समान तथा रत्नों से विभूषित वह अनंग मदजल से युक्त हाधी के समान सुशोभित हो रहा था।। छ।। महानील मणि के समान नील पथ वाले आकाश में मनोरम उज्ज्वल शुभ्र दिशा में कम्पायमान चंचल पत्तों वाली लताओं एवं वृक्षों से युक्त एक स्निग्ध भूमि प्रदेश को देखता है। शम्बु का वह उत्तम ज्येष्ठ भाई प्रद्युम्न (3) (?) आशीपुष्प । (8) कस्तूरी : (9) भनक : (100) चूनै । || सारिपामे . 412) मेघ: । (13) प्राकृतं । 140 (1) इन्द्रवत्।
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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