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प्रस्तावना
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सूर्यास्त – सूर्यास्त-वर्णन भी कवि ने उत्प्रेक्षाओं एवं कल्पनाओं के माध्यम से किया है। इस प्रसंग में उसने सूर्य को सन्ध्या के रक्त से लिपटा हुआ पिण्ड बताया है और कहा है कि अपने इसी दोष को मिटाने के लिए बह सूर्य अपने पारीर-प्रक्षालन हेतु समुद्र की ओर चला गया है और उसने अपने को समुद्र में डुबा दिया है (6/19/7-8)।
रात्रि-चन्द्रोदय – रात्रि एवं चन्द्रोदय का वर्णन कवि ने काम से विह्वल कामीजनों की उदीप्त चेष्टाओं को चित्रित करने के प्रसंग में प्रस्तुत किया है। कवि ने सूर्य के समान ही चन्द्रमा की अनेक उत्प्रेक्षाएँ की हैं। उसे सूर्य को गला देने वाला, दुर्जनों को पीडा देने वाला तथा शृंगारमय खजाने का कुम्भ-कलश (6/20:2-3) कहा है। कवि को वह ऐसा प्रतीत होता है, मानों शिवजी के सिर का रत्न ही हो, या कामदेव के पाँच वाणों का तेज धार देने वाला शान (पत्थर) ही हो (6/20)। यह वर्णन अतिशयोक्ति पूर्ण शैली तथा मानवीय-भावनाओं के उद्दीपन कारक के रूप में चित्रित हुआ है।
रात्रि के प्रारम्भ होते ही कवि ने दूतियों के गमनागमन (6/21/7) मानिनी नारियों के मानभंग (6/20111) एवं प्रिय-वियोग में चकबी का दु:खी होकर कुरर-कुरर ध्वनि करने आदि के हृदय-स्पर्शी रूप चित्रित किए हैं। अन्यत्र एक स्थल पर कवि ने कल्पना की है कि चन्द्रमा की चाँदनी से ऐसा प्रतीत होता है, मानों सारे जगत ने क्षीरोदधि में स्नान ही कर लिया हो। वायस भी हंस की भांति दिखाई दे रहे हैं और सरोवरों में कुमुदनियाँ खिलकर हर्षोन्मत्त होकर झूम रही हैं (6/21)।
उक्त वर्णनों के अतिरिक्त प0 च० में पुरुष की वीरता, सुन्दरता एवं उसके धार्मिक-आचरण पर भी कवि ने विशेष जोर दिया है, क्योंकि एक ओर जहाँ बल-वीर्य पुरुषार्थ एवं पराक्रम से देश की सुरक्षा एवं स्वस्थ-समाज का निर्माण होता है वहीं दूसरी ओर धार्मिक-आचरण से पारस्परिक विश्वास का प्राबल्य एवं अनुशासन की प्रवृत्ति भी बढ़ती है। __ऐसे वर्णनों में निम्न प्रसंग दृष्टव्य हैं। यथाश्रीकृष्ण की वीरता का वर्णन...
'चाणउर विमहणु देवइ पांदणु संख-चक्क-सारंगधरु ।
रणे कंस-खयंकरु असुर-भयंकर वसुह तिखंडहिं गहियकरु ।। 1/12/9-10 सैन्य-प्रयाण-वर्णन
वलियसेण्ण पयभरु पयभरु असहतिए आकपिउ भए तसिय धरत्तिए ।
फणि सलिवलिय टलिय गिरि ठायहो णियवि पयाणहो महुमहरायहो ।। 6/13/9-10 धार्मिक आचरण....
राएण राउ मउ माणु चत्तु समभावए मपिणउ सत्तुमित्तु ।
तिणु कंचणु पुणु मणे तुल्ल दिठ्ठि णवि रूसइ अहण कयावि हिट्ठ।। 5/4-5 सौन्दर्य-वर्णन
पडिपट्टणेत्त गठ्ठिय विचित्तु ससि-सूर कंत कर-णियर-दित्तु । कंचण-मण सिंहासण सुणेह गं मेरु-सिहरि णव-कण्ण मेह ।।11475-6 भुवणत्तय जणस्स सुमणोहर सविलासें ण सक्कउ। दाणालीढ-करुव-रयणं सुज्जोइउ सहइ गंगउ।। 15:4/1-2