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महाकद सित निरइउ पज्जुण्णचरित
[15.1.1
पण्णरहमी संधी
दुबई जह रावण-तण"ए। पत्रणंगउ वंधेविणु ।
तह वियब्भु” मयणेण दंसिउ हरि पणवेप्पिणु । । छ।। ता सिरिहरेण सहत्थई मेल्लिवि उववेसिउ आसणे उच्चल्लिवि। पुणु सुमहुर-वपणहिं सम्माणिउ मा सुमणे जं अवमाणिउ। तं णिय सस-सुवासु खम किज्जइ आहासइ वियन्भु पहु पुज्जह । णियय सहोयरि मइँ णिभंछिय आवरु रि तुज्झु केर णउ इंछिय । फतु संपत्तु मइंमि दुव्वयणहो एत्थु ण दोसु देव किं मयणहो । विणउ चवंतु पसंसिउ राम
सज्ज सभुवण विणिग्गिय में। दिण्ण सरपण-कोस-ग्य-रहवर हय-भूसण-सुवत्थ बहु पुरवर । दुद्दम सुहड-णिवह रणे दवणहो लहु विरइउ विवाहु रइरमणहो। वइयंभी सहु सुटहु सुसोहणु संवुहे तह4) किउ असुह-णिरोहणु। पाणिग्गहणु वि समउ विचित्तिएँ णिज्जिय छण-ससि णिय-मुह दित्तिएँ।
पन्द्रहवीं सन्धि
कृष्ण से क्षमा-याचना कर रूपकुमार अपनी दोनों पुत्रियों का विवाह प्रद्युम्न एवं शम्बु के साथ कर देता है द्विपदी— जिस प्रकार रावण-पुत्र इन्द्रजीत ने पवनांगज हनुमान को बाँधा था, उसी प्रकार मदन-प्रद्युम्न विदग्ध
राजा को बाँधकर ले आया और हरि को प्रणामकर उन्हें दिखाया।। छ ।। तब श्रीधर ने स्वयं अपने हाथों से उसके बन्धन छोड़कर तथा उसे लेकर उच्च आसन पर बैठाया। पुन: सुमधुर वचनों से उसका सम्मान किया और कहा कि -.."सुमन-पुत्र प्रद्युम्न ने जो अपमान किया है, उससे उस पर क्रोध मत करना, वह आपकी बहिन का ही पुत्र है अत: उसे क्षमा कीजिएगा।" तब विदग्ध रूप राजा उन प्रभु—कृष्ण से बोला—"हे प्रभु मेरी आशा पूर्ण कीजिए। मैंने अपनी सहोदरी बहिन की भर्त्सना की है और आपके किसी सम्बन्धी को भी मैंने नहीं चाहा। अब मैंने अपने उन्हीं दुर्वचनों का फल पा लिया है। हे देव, इसमें मदन का कोई दोष नहीं। राम ---- कृष्ण द्वारा प्रशंसित वह रूपामार विनयपूर्वक अपने मन ही मन में कहने लगा कि—(अपनी इस उदारता के कारण ही) यह कृष्ण भुवन की शोभा स्वरूप एवं इनका नाम विश्व में विख्यात हो गया है।" उस (रूपकुमार) ने रत्न, कोष, गज, उत्तमरथ, घोड़े, आभूषण, सुन्दर वस्त्र, अनेक समृद्ध नगर रण में दुर्दम सुभट-समूह एवं सुवर्णादि दहेज में देकर शीघ्र ही रतिरमण – प्रद्युम्न के साथ (अपनी प्रथम कन्या का) विवाह कर दिया। विषम एवं विचित्र परिस्थितियों में भी अशुभ निरोधक सुशोभन नक्षत्र में अपनी अत्यन्त सुन्दरी तथा अपनी मुख-कान्ति से पूर्णमासी के चन्द्रमा को भी निर्जित कर देने वाली वैदर्भी नामकी दूसरी कन्या
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इन्द्रनित.।।2) राजा रूपकुमर । (31 ममपूचंताम् (4) विवाहे।