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________________ 14.24.14] महाकर सिंह चिरश्न पष्णचरिउ दुहिएहि 4 मि सद हरेदिखणंतरे विम्फुरिय व उद्धसिय तणुसरु णयरिहिं पइसरइ कह हिविणु गयजूह णिय मंदिरे णं सीहु जह 280 घत्ता- पत्तु वेण उन्भुव पुरवरे" । इय पज्जुष्ण कहाए पयडिय धम्मत्थ-काम-मोक्खाए बुहरल्हण सुब कइसीह विरइयाए रूवे कण्णाहरणं णाम चउदहमी संधी परिसमत्तो ।। संधी 14 ।। छ । । पुफिया यत्काव्यं साहाय्य समवाप्य नात्र सुकवेर्प्रद्युम्नकाव्यस्य यः, कर्ताभूद्भवभेदनैक चतुरः श्री सिंह नामाशमी । साम्यं तस्य कवित्व गर्व्व रहितः सहितः को नाम जातौ वनौ । श्रीमज्जैनमते प्रणीत सुपथे सार्थः प्रवृत्तिर्क्षमः । ध्रुवकं । । वेगपूर्वक चतुर्भुज के नगर द्वारावती में आ पहुँचे ! घत्ता - स्फुराग्रमान मुख तथा ओजस्वी शरीरवाला वह स्मर [305 - प्रद्युम्न उस द्वारावती नगरी में किस प्रकार प्रविष्ट हुआ? उसी प्रकार जिस प्रकार गजयूथों को मारकर सिंह अपने निवास स्थान पर लौटता है। ।। 280 ।। इस प्रकार धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष को प्रकट करने वाली बुध रल्हण के पुत्र कवि सिंह द्वारा विरचित प्रद्युम्न कथा में "राजा रूप और उसकी कन्या के अपहरण" नामकी चौदहवीं सन्धि समाप्त हुई ।। सन्धिः 14 । । छ । । पुष्पिका— कवि परिचय काव्य - शास्त्र की सहायता पाकर सुकवि कहलाने वाला भी कवि जिस प्रद्युम्न कथा को न लिख पाया, उसी प्रद्युम्न - कथा का कर्त्ता संसार के ज्ञान में चतुर सिंह नामक एक शमी कवि हुआ। इस पृथिवी पर उस गर्वीले कवि सिंह के समान सुप्रसिद्ध अन्य कौन सा ऐसा कवि हुआ, जो श्रीमज्जैनमत द्वारा निर्दिष्ट सुपथ में सार्थक रूप से प्रवृत्ति करने में सक्षम हो ? ।। ध्रुवक ।। (24) (4) मुत्राण्या सड़ रूपगता वृद्धों भरनी गृहे यत्र-तत्र आगत (5) द्वारावती नगरे।
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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