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14.23.11]
महाका सिष्ठ विरहाउ पज्जृष्णचरिउ
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घत्ता-. आपण्णेवि वियम्भ वाड'वग्गि इव पज्जलिउ।
हणु-हणु-हणु पभणंतु विज्जुज्जतु असिकरे कलिउ ।। 278 ।।
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(23)
चवंत महत) ममुक्कलेव णिवारिउ राय म एरिसु कज्जु हरी-वलहद्द-पयाव समुद्दे ण थक्कु विरुद्ध विधब्भु भणेण हणेउ रउडु वि डिंडिमु ताम पबंधहु रासहरोहेविणो) इय णिमणेविण संवु पलित्तु भणेइ हयास अहमुहु थाहि अहं तुव गोत्तहो पत्तु कयंतु सरेण सविज्ज पयावइ देसु सो मग्गु-अमागु ण आवणु तत्थ
तुमपे सरि 'यहँ पाविउ देव । करेहि पवड्ढइ विग्गहु अज्जु । व वुड्डहि सेण्ण समाणु रउ । स भिच्च असेस पबोल्लिय तेण । भवाडहु पटण पासहिं जाम। जियंतवि सूलिहिं बेवि मरहु। . हुवासणु गाइँ घिएंग वसित्तु । वलेण समाणु ण एत्थहो जाहि । ण चुक्कइ एक्कु जि मज्झु जियतु । णिरुभिउ डोंवह-सव्वु पएसु। सुरालउ मंदिरु सवयण जत्थ ।
घत्ता.- उन दोनों का प्रस्ताव सुनकर विदग्ध राजा - रूपकुमार वाडवानल की तरह प्रज्ज्वलित हो गया और हनो, हनो, हनो कहते हुए उसने बिजली के समान उज्ज्वल तलवार हाथ में ले ली।। 278 ।।
(23) असह्य अपमान के कारण डोम वेशी प्रद्युम्न अपनी विद्या के चमत्कार से कुण्डिनपुर को उजाड़ देता है
(विषम परिस्थिति देखकर) मद रहित महामन्त्रीगण कहने लगे कि, "हे देव, (इस राज्य को) आपने अपने चरित्र-पुरुषार्थ से प्राप्त किया है। अत: हे राजन, इसे सुलझाइए । हे आर्य ऐसा कार्य मत कीजिए, जिससे विग्रह बढ़े। हरि एवं बलभद्र का प्रताप रौद्र समुद्र के समान है, अपनी सेना के साथ उसमें मत डूबिए। वह विदग्ध राजा रूपकुमार अपने मन से उनका विरोध करने से नहीं रुका और अपने समस्त भृत्य – सेवकों को आदेश दे दिया कि – भयानक रूप से डिडिम नाद कर दो और समस्त पट्टन में एवं उसके पार्श्व भागों में घुमा दो। इन अविनीतों को बाँधकर गधे पर बैठा दो और जीते जी शूली पर चढ़ा दो जिससे वे मर जायें ।" विदग्ध राजा रूपकुमार का यह कथन सुनकर एम्बुकुमार प्रज्ज्वलित हो उठा। ऐसा प्रतीत होता था मानों अग्नि ही घृत पा कर प्रदीप्त हो उठी हो। वह बोला_"हे हताश, अधोमुह होकर रह। इस संसार में बलदेव के समान कोई भी बली नहीं है। तेरे गोत्र के कृतान्त के रूप में मैं यहाँ पहुँच गया हूँ। मेरे जीते जी अब एक भी शत्रु नहीं बचेगा।" उस स्मर—कामदेव ने भी अपनी विद्या को आदेश दिया, जिसने इन दोनों डोमों की सुरक्षा के लिए समस्त प्रदेश घेर लिया। वहाँ मार्ग अमार्ग में बदल गये, बाजार नष्ट हो गये, देवालय एवं भवन भी न रहे।
(221 1. अ. (23) 1.4 गि।
(23) (1) मत्रिणः । (2) निजचर नेप्रप्र । (३) चहानिरख ।