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मार तिरुविण नमुनाचरित
[14.22.1
(22) जं जि सहोयरेण अवमाणिय तं हरि-भज्ज सुछ विद्दाणिय । ता भयरद्धएण आहासिउ
को वलुवंतु अम्मिमहो पासिउ। णियमणेण धरि विसाउ पमेल्लहि दे आएसु अम्मि मोक्कल्लहि। इय जंपिवि कम-कमल णवेविणु णिग्गउ संवु-समउ विहसेविणु। गल-गज्जत वेवि संचल्लिय
पलय समुद्द णाइँ उच्छल्लिय। पुणु थोवंतरम्मि जाएविणु
विहि मायंग-रूउ लहु लेविणु। कुंडिणपुरवरे ते पइसेविणु
दिट्छु वियध्भु राउ पणदेप्मिणु। ते जपंति देव आयण्णहिं
सइँ उल्लविउ वयणु जई भण्णहिं एरिसु चवइ लोउ हरि-पटणे दुट्ठाराइ-लेण्ण-दल बटणे। णिय दुहियउ भीसम णिव तणुरुहु सवएहिमि देसइ सररूह मुहु । णिसुणेदिणु अम्हइँ हरि-गायण विविज्ञ गीप-रस दोजुप्पायण । सुकुल सुरूव सधणु सवियक्षण आविय तुव पुरवरे गोरक्षण। देहि सकण्ण स जुबलु परिणेसह मणिहारुव वच्छपले घुलेसहु ।।
(22) माता -- रूपिणी के अपमान से क्रोधित होकर प्रद्युम्न एवं शम्बु डोम का रूप धारण कर कुण्डिनपुर जाते
हैं और राजा रूपकुमार से उनकी पुत्रियों के साथ अपने विवाह का प्रस्ताव रखते हैं । चूंकि सहोदर ने ही अपमानित किया था, अत: वह हरि-भार्या (रूपिणी) अत्यन्त दुःखी एवं निराश हो गयी तब मकरध्वज – प्रद्युम्न ने उससे पूछा-"मेरे सामने हे मात, कौन अधिक बलवान है? अपने मन में विषाद मत धारण करो, उसे छोड़ो। हे माँ, मुझे ..- हमें आदेश देकर उसे छोड़ो। “मह कहकर तथा उसके चरण कमलों में नमस्कार कर, हँसकर शम्बु के साथ निकल गया। वे दोनों ही गल-गर्जना करते (गाल गजाते) हुए चले। वे ऐसे प्रतीत होते थे मानों प्रलय समुद्र ही उछालें भर रहा हो। थोड़े ही समय में जाकर उन दोनों में शीघ्र ही मातंग (डोम) का रूप धारण कर लिया। वे कुण्डिनपुर में प्रविष्ट हुए और उस विदग्ध राजा रूपकुमार को देखा। उसे प्रणामकर उन दोनों ने कहा-आपने जो वचन कहे थे, उन्हें मानिए, दुष्ट शत्रुओं के सैन्य-दल का मन्धन कर देने वाले हरि-कृष्ण के पटन - · द्वारावती में लोग ऐसा कह रहे हैं कि "भीष्म राजा का पुत्र – राजा रूपकुमार अपनी कमलमुस्खी दोनों पुत्रियाँ चाण्डाल-पुत्रों को देगा ।" इस कथन को सुनकर ही हम आपके नगर में आये हैं। हम लोग हरि का गान करते हैं, गीतों में आश्चर्यजनक रीति से विविध रसों को उत्पन्न करते हैं। हम लोग अच्छे कुलवाले हैं, अच्छे रूपवाले हैं, धनी हैं, विचक्षण हैं, गोरक्षण करनेवाले हैं अर्थात् ग्वाला हैं। अतः अपनी दोनों कन्याओं का हम दोनों के साथ परिणय कर दो और मणिहार के समान ही हमारे वक्षस्थलों पर लगकर हमसे घुल-मिल जाओ।