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________________ 300] मशफाइ सिंह विधा पञ्जुण्णरिज [14.20.5 14 ___10 सामंत-मंति भडरहवरेहि हइ जाण-विमाण, कुंजरेहिं । परियरिउ जंतु दि यहेहिं पत्तु धय-दत्तहिं छाइउ दह-दियतु । पइसारिउ चंदोयरु पुरम्मि बहु उच्छवेण णिय सिरेहरम्मि। हरि-वलह णेहरस-णिब्भरेहि सुपसंसिवि सम्माणियउ तेहिं । विरइय सुभाणुहे मण-मणोज्जु खगवइ-सुव सहुँ परिणयण कज्जु । मणि-गण विप्फुरियइँ मंडवेण णच्चंत ल्हासरस-तंडवेण। वज्जिय तूरहिं गिय-मंगलेहि धय-दप्पण सिय चमरहिं चलेहिं । इय विविहाहर-पुरंधियाहँ पयडिय किउ पाणिागहणु ताहूँ। तोसेवि सयण पीणिय वराय पुज्जिय खगणाहइँ सहु सहाय । पत्ता– थिय गव्वुवूढ सुकेयसुव पुलइउ बउ वेल्लहल कर। गउ चंदोयरु णिय पुरवरहो पणवेप्पिणु हरि-हलहर।। 276 ।। 15 (21) एतथंतरे रइरमणहो जणणिए सपेसिउ गउ सो कुंडिणपुरे णिय दूबउ दिग्गय गइ-गमणिए । पंचवण्श मणिगण स खंचिय घरे । कुंजरों से घिरा हुआ द्विजवरों, अपनी प्रियतमा एवं पुत्री -- अनुन्धरी के साथ चला। उसकी ध्वजाओं एवं छत्रों से दशों-दिशाएँ आच्छादित हो गयीं। "जब चन्द्रोदर सत्यभामा के नगर में आया तब स्वयं नारायण ने अनेक उत्सवों के साथ उसका नगर प्रवेश कराया और हरि-बलभद्र के स्नेह-रस में पगे हुए उस चन्द्रोदर की प्रशंसा कर नारायण आदि ने सपरिवार चन्द्रोदर को सम्मानित किया। खगपति-पुत्री-अनुन्धरी के साथ परिणय-कार्य हेतु सुभानु के मन को मनोज्ञ बनाकर वह सत्यभामा मणिगणों से स्फुरायमान ताण्डव नृत्य एवं रास-लीलाओं से युक्त मण्डप में गयी और बजे हुए तूरों, मंगल-गानों, फहराती हुई ध्वजाओं, दर्पणों, शुभ्र चंचल चामरों के बीच तथा विविध आकृतियाँ धारण करने वाली पुरन्धियों के सम्मुख उन दोनों वर-वधू का पाणिग्रहण-संस्कार करा दिया गया। स्वजनों को सन्तुष्ट कर सहायकों सहित खगनाथ का सम्मान किया गया। पत्ता- विवाहोपरान्त सुकेत-सुता (सत्यभामा) गर्व से फूल उठी। बेला (लता के) समान उसका शरीर पुलकित हो गया। चन्द्रोदर भी हरि-हलधर को प्रणाम कर अपने नगर को वापिस लौट आया। ।। 276।। (21) राजा रूपकुमार अपनी बहिन रूपिणी द्वारा प्रेषित विवाह-प्रस्ताव को ठुकरा देता है इसी बीच दिग्गज-गति गामिती रतिरमण की माता रूपिणी ने अपने दूत को कुण्डिनपुर भेजा। वह दूत विशाल एवं उन्नत सुन्दर कोट वाले. दुर्गम, प्रचुर भवनों से युक्त, नागरिक-जनों से भरे हुए हाटों एवं मार्गों वाले कुण्डिनपुर में पहुँचा। वहाँ पंचवर्ण के मणि-समूह से खचित घर (राज-भवन ) के अनिन्द्र दरवाजे में प्रवेश (28) |.ब. हिं। 2. "। 1209 (1) वेष्टित ।
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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