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________________ 14.18.101 पताका सिंह विर53 पज्जण्णचरित [297 घला.- वरवत्थहार सिंगारधर कुंडल-मउडालंकरिय। तुरया वलग रेहंति कह णं सुर सग्गहो अवयरिय।। 273 ।। (18) पुलण-खलण-उल्ललवालणं भमण-दमण-दिढ वागु 'चालणं । वग्ग-लग्ग-मग्गे पयट्टणं उन्भ-खुब्म-खुर-खोणि घटणं । एम संतुणा वाह-वाहणं किउ सुभाणुणा तह ण साहणं । ताम णायरीयणु पयंपए सर-सहोयरस्समु ण को जए। रूब-पदर सेणंपि अहियरो समु हवेइ कि भाणु भाथरो। णिय विह राणिय सुवहो हरि-पिया हिम-हयाहे पोमि-णिहि णिह थिया। चवइ सच्च सकसाय एरिसं रे हयास तुव कत्थ पउरिसं ।। मयण रइव विण्णाण केण तणउ मज्मु ण तुज्झु हाण। अहव किंतु मित्था पलावणं करहु वेवि णिय सेण्ण दावणं । होइ हीणु चमु जस्स सो तहो देह पुव्व धणइ ण इयरहो। घत्ता- उत्तम वस्त्र एवं हार का श्रृंगार कर, कुण्डलों एवं मुकुटों से अलंकृत होकर वे दोनों घोड़ों पर चढ़े हुए किस प्रकार सुशोभित हो रहे थे? उसी प्रकार, मानों देव ही स्वर्ग से उतर आये हों ।। 273 || (18) घुड़सवारी एवं सैन्य प्रदर्शन में भी शम्बु, सुभानु को पराजित कर देता है पुलण (पुलक-पुलक कर चलाना), खलण (लड़खड़ा कर चलाना), उत्तवण (कुछ उचक-उचक कर चलाना), चलण (कुछ वेग गति से चलाना), भमण (कुछ घूम-घूमकर चताना), दमण (रुक-रुक कर चलान्ग). जोर से लगाम खींच कर चलाना, लगाम खींचकर मार्ग में ले आना, लगाम खींच कर (घोड़े को) उछाल देना, लगाम खींच कर घोड़े को कुदा देना. भूमि पर खुर रगड़कर चलाना आदि क्रियाओं के साथ शम्बु कुमार ने घोड़े की सवारी की। किन्तु सुभानु घोड़े की सवारी शाम्बु के समान नहीं साध सका। यह देखकर नारीसमूह कहने लगा कि "संसार में स्मर—प्रद्युम्न के भाई-शम्बु के समान कोई भी नहीं है। वह कामदेव की प्रवर सेना से भी अधिकतर ही है, भानु का भाई—सुभानु उसके समान कैसे हो सकता है? हरिप्रिया (सत्यभामा) अपने पुत्र को पराजित देखकर हिमाहत कमलिनी के समान शिथिल पड़ गयी। तब सत्यभामा ने कषाय-सहित पुन: ऐसा कहा – “रे हताश, इसमें तेरा पुरुषार्थ कहाँ? (अर्थात् तुझे अपना पुरुषार्थ दिखाने का अवसर कहाँ मिला?) यह तो मदन द्वारा रचित विज्ञान के द्वारा ही हो रहा है। इससे मेरी या तेरी हार नहीं मानी जा सकती। अथवा, इस मिथ्या प्रलाप से क्या लाभ? अब तुम दोनों अपनी-अपनी सेनाओं का प्रदर्शन करो। जिसकी सेना हीन होगी वह विशाल सेना वाले को अपूर्व धन देमा, इतर को नहीं।" सत्यभामा के इस कथन को उन दोनों ने अपने (18)]. व. बा।
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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