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14.16.15]
महाकर सिंह विरहाउ पञ्जुषा_रेड
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गरहति चवई मायाविएण
कय कबडइ जंववाहि तुएण। जुएण वि हाराविउ सुभाष्णु लिय काय-कोडि णिम्महि चिमाणु । एवढं तुम्हहँ णस्वर णियंतु सुव तंवचूत' गणर रमंतु । भज्जइ भिडंतु रत्तच्छु जस्स कणयहो -कोडिउ सो जितस्स । देसइ जंपिवि मेल्लिय विहंग ते चलिर खलिर उद्दिर अहंग। कयउद्ध कंठ केसर रउद्द
जुझंति मुक्क अद-गहिर-णद । चल पक्ख घाम धुम्भंत तछ माह-चंचू पहरहिं अणि णछ। णिय पक्खि-पेक्ति सच्चंगएण भज्जंतु वि रोस वसंग एण। वसु वग्ग तेउ दोच्छियउ संयु कि एत्तिएण भणे वहहिं गन्छ । मेल्लहु इह दिण्णिनि विविह दव मयहि पमुह जे भुवणि भव्व । जिज्जा गंधेण वि गंधु जइवि2) कोडिउ-सुवण्ण चतारि तइवि ।
अप्पइ हय मण्णिउ विहिमि झत्ति मथगाणु एण कय बुद्धि-सत्ति। धत्ता- तिल डहेवि पर किउ "चुण्णु लहु परिमल बहल सुवंधहँ"।
परिसेसिउ णिय गंधेष पिएर गंधु असेसहा गंधहँ ।। 272 ।।
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पुत्र-शम्बु ने मेरे सुपुत्र --सुभानु के साथ छल-कण्ट कर उसे जुए में हरा दिया है और उस निर्भम एवं अहंकारी ने उस (सुभानु) से एक करोड़ स्वर्ण (-मुद्राएँ) ले लिया है। अत: अब, हे नरवर, तुम्हारी देखरेख में (शम्बु एवं सुभानु में से) जिसका रक्त-वर्ण की आँखों वाला ताम्रचूड़ (मुर्गा) मुर्गी के साथ प्रेमपूर्वक रमण करता हुआ एवं भिडन्त करता हुआ पराजित हो जायगा वह विजेता को दो कोटि सोना देगा।" ऐसा कह कर उन्होंने अपने-अपने स्वस्थ पक्षी छोड़े। वे लड़सड़ाते हुए उछलते हुए कण्ठ ऊँचा उठाये हुए केपार. –अपालों को रौद्र बनाये हुए अत्यन्त गम्भीर नाद करते हुए जूझने लगे। चंचल पंखों से घातकर धूमते हुए नखों एवं चोंच के प्रहारों से एक-दूसरे को घायल कर भाग खड़े होते थे। (इसी बीच में) सत्यभामा के पुत्र ने अपने पक्षी को भागता हुआ देखकर वसुदेव के आगे ही रुष्ट होकर पाम्बु को दोषी ठहराते हुए कहा-"मात्र इतनी विजय से ही तुम अपने मन में अहंकारी बन गये हो? भुवन में भव्य मदन—कामदेव आदि प्रमुखों के सम्मुख अब यहाँ हम दोनों ही विविध (बहुमूल्य) द्रव्य को दाँव पर लगायें और जिसका सुगन्धित द्रव्य दूसरे के सुगन्धित द्रव्य को जीत लेगा वही (विजेता) चार कोटि स्वर्ण को प्राप्त करेगा।" इसे भी उसने अपने मन में मान लिया और इस प्रसंग में भी मदन – कामदेव के अनुज शम्बु ने झट से अपनी बुद्धि की शक्ति से विचार कर लिया और उसनेधत्ता.- तत्काल ही तिलों को जलाकर प्रचुर मात्रा में चूर्ण बनाया और उसे इतना सुगन्धित बना दिया कि
उसने अपनी गन्ध से सुभानु के सुगन्धित द्रव्य की समस्त सुगन्धि को नष्ट कर दिया।। 272 ||
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युमेन । (2) उदिचेत् । १३ । bai nETना । (45 तिल चूर्णेन ।