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14.15.3]
महाकद सिंह विरहाउ रज्जुष्पाचारेड
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सच्चहिं देमि लाम सा टालिय सुहं णिय द"इवें महु इह मेलिय। जाहि सभवणहो पुण्ण-मणोरहे अणुहुंजहिं सुहु अइ अणुबमु सहे। गयसाता' विलुलंत महाधय रह-रस-वस मुक्का खगवई"-सुय । संपत्तिय समीउ हयरिष्ठहो। णं सुरसरि पवाहु ससिइट"ठहो । थियई वेवि किसलय सयणायले कुसुमरस धवलिय अलि णहयले। चित्तई विहिमि परोप्परु णेत्त. मिलियइँ णिरु सराई कय चित्त । ता सउहम्महो मणिगण फुरियउ सच्चहे गब्भवालि अवयरियउ।
मेल्लेविणु विमाणु ससि पहयरु ससिसेहरु णामें सो सुरवरु। घत्ता- गउ सरहसु सारंगधरू णियमंदिरहो स-पिउ8) संतोस. । विज्जिज्जमाणु चल-चामरहिं वंदीयण थुणंत जय घोस।।। 270 ।।
(15) ता सोहग्ग-गब्ब गिब्बूढउ विण्णिघि माण-'करिदारूढउ। विहि उप्पण्ण तणय सुमणोहर एक्कहिं विणे अणेय लक्खणधर।
संवु-सुभाणु नाम णिम्मल मण जग-जीविय णावई सावण-घण । करनी थी उसे तो उस प्रद्युम्न ने टाल दिया और भाग्य से तुम्हें यहाँ मेरे पास भेज दिया। हे सखि, अब पूर्ण मनोरथ होकर अपने निवास पर जाओ और अत्यन्त अनुपम सुखों का अनुभव करो।" यह सुनकर वह जाम्बवती अपनी महाध्वजा फहराती हुई अपने भवन को चली गयी। इधर, खगपति सुकेत की पुत्री वह सत्यभामा रतिरस के वशीभूत होकर नारायण के पास पहुँची। वह ऐसी प्रतीत हो रही थी मानों गंगानदी का प्रवाह ही समुद्र के पास पहुंच गया हो। वे दोनों आकाश में स्थित भ्रमरों से युक्त कुतुमरस से धवलित पौयातल पर स्थित्त हो गये। परस्पर में दोनों के नेत्र मिले। फिर हृदय से हृदय मिल कर एक दूसरे की श्वासें मिलने लगीं। तभी मणिगणों से स्फुरायमान शशिशेखर नामका वह सौधर्म देव शशिप्रभा वाले विमान से चयकर सत्यभामा के गर्भ में अवतरित हुआ। घत्ता- दुराए जाते हुए चंचल चमरों से सम्मानित तथा जयघोष करते हुए बन्दीजनों से युक्त वह शारंगधर -
कृष्ण हर्षित होकर सन्तुष्ट प्रियतमा – सत्यभामा के साथ रथ में बैठकर अपने भवन में जा पहुँचा।। 270।।
(15) जाम्बवती का पुत्र शम्बुकुमार सत्यभामा के पुत्र सुभानकुमार को द्यूत-विधि में बुरी तरह पराजित कर देता है
तब सौभाग्य के गर्व से परिपूर्ण सत्यभामा एवं जाम्बवती दोनों ही मान रूपी हाथी पर आरूढ़ हो गयी। एक दिन उन दोनों ने अनेक लक्षणधारी सुन्दर पुत्र उत्पन्न किये ।
निर्मल मन वाले उन दोनों पुत्रों के नाम शम्बु एवं सुभानु रखे गये। वे ऐसे प्रतीत होते थे मानों जगत् को प्राण देने वाले सावन के मेध ही हों, अथवा मानों यादव कुल रूपी आकाश के सूर्य-चन्द्र ही हों, अथवा मानों
(1400) भाव व्योम 14 चंदगती। 15 सत्यभामा। 6नारामास ।
शिमुद्रस्य । ध्यास |
(15) I. अ नईदा ।