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14.13.9]
घत्ता -.
महाकद सिंह विरह पज्जुण्ण यरिउ
छत्ता — वर कामरूव अंगुच्छालय ता दिण्णीरूरेण सिक्खाविय ।
गिमदेहहो तेण तुरंतियए सच्चहि रूव रिद्धि मणे भाविय । । 268 ।।
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करेवि सुकै सुबहे समुणिय तणु हाएवि सुह सलिलेण च त्यइँ संचल्लिय रेवमगिरिवर ब तरल-तमाल-ताल तरु दाविणि इय णियंति गम तहिं जहिं हरि थिउ ता दिट्ठी सुंदरि सवन्मुह अमुतेण वि ते पवंचइँ वित्त स रमणमाल गलकंदले दिग्ण बैल साथ रहूं महंग
तह सिंगार 'विण्हु परियण जणु । तीय भांत जुवईयण सत्थइँ । कुसुमरसोवळे सुरहि सालिवि वणे । चंदण तरु' - - चुवरस करि हय वणि । म पियए समु संकेउ वि किउ । सुह. जल सरे सररुह वियस्सिय मुह । पियदसणे अड्ढिय रोमंचइँ ।
णं तिसु-ससि णिएवि उड्गण (2) चले
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पुणु कीलेवि अणुरत्तइँ यिणे ।
(13) . अ. चि' । 2. अ ल्ल' । 3. अथ ।
फिर उस स्मर - प्रद्युम्न मे उत्तम कामरूप अँगूठी का छल्ला उस जाम्बवती को देकर उसे सिखा-पढ़ा दिया । उस जाम्बवती ने भी अपने शरीर से तुरन्त ही सत्यभामा के रूप की ऋद्धि का अपने मन में विचार किया ।। 268 ।।
(13)
कृष्ण ऊर्जयन्तगिरि पर मुद्रिका के प्रभाव से सत्यभामा दिखाई देने वाली जाम्बवती को देव- प्रदत्त हार पहिना देते हैं ( जाम्बवती ने उस अँगूठी के प्रभाव से) सुकेत -पुत्री सत्यभामा के समान शरीर बनाकर विष्णु के परिवार जनों के योग्य शृंगार - चिह्न धारण कर लिया। पुनः चौथे दिन शुभ जल से स्नान किया। इस कारण युवतिजनों ने उसे स्वच्छ घोषित कर दिया ।
वह जाम्बवती कुसुम रसों से सुरभित, शालवृक्षों से सुशोभित, सरल देवदारु, तमाल एवं ताल वृक्षों से युक्त तथा चन्दन वृक्ष से चूते हुए रसों से आहत हाथियों से व्याप्त रैवतगिरि ( गिरनार ) पर्वत की ओर चल पड़ी। वह खोज - बीन करती हुई वहाँ पहुँची, जहाँ हरि - कृष्ण विराजमान थे उस ( जाम्बवती) ने उन्हें अपनी प्रथम प्रिया (सत्यभामा) के समान ही संकेत किया। तभी हरि ने अपने सम्मुख विकसित मुख वाली उस सुन्दरी को देखा मानों शुभ्र जल से भरे हुए सरोवर में विकसित कमल ही हो। कृष्ण ने ( जाम्बवती के ) प्रपंच को नहीं समझा। उस प्रिया को देखते ही उनका मन रोमांचित हो उठा। उन्होंने अपनी रत्नमाला उस (प्रपंचनी जाम्बवती) के गले में डाल दी। वह ऐसी प्रतीत हो रही थी मानों बालचन्द्र के निकट चंचल उडुगण ही एकत्रित हो गये हों अथवा मानों समुद्र ने आकाशरूपी आँगन को अपनी लहरों से ही तरंगित कर दिया हो । पुनः अपने मन में अनुरक्त होकर उन दोनों ने क्रीड़ाऍ की 1
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(13) (1) गरिन। (2) आकाशे (3) समुद्रेण ।