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________________ 288] महाकद सिंह विराउ पज्जुण्णचरिउ 114.10.3 ता कंदप्प-सप्प दप्पाहरु कहइ जिणेसरु णिसुणइँ सुरवह। तुम्हइँ वेवि हुत चिक गोमय) असरिस सलिल णिवाय वसइ सय । पुणु संजाय वैवि दियवर सुव आंगभूइ-मरुभूइ विणय जुव। मुव तहिं सावय-वय पालेविणु 'हुव सोहम्मि-तियस जाएवि पुणु' । खयकाल. अभरतु मुवाविय उज्झाइरि मणुव तणु पाविय । पुण्णभ६ मणिभद्द वणीवर दिढ चारित्त दयालुव वयधर । गथ जीविए परदेहु पमेल्लिवि थिय सहसारेक्क हुव पेल्लिवि। तहिं दिक्षिण वि हय दइवें चालिय इंदवित्ति इंदवयहो ढालिय। णिय माहप्यु अवर किं लेक्खा आउखइँ जयम्मि को रक्खइँ । कोसलपुरे सुवण्णणाहहो परे धारिणि उवरे णइँ सयदलु सरे। उप्पण्णा महु कयडिहु पणामइँ दुद्धररिउ रणे रइ असमाणइ। धत्ता-- उग्गय कराल करवाल कर महि समग्ग साहेविणु। पसई असज्झु किउ तवयरणु सल्लेहण मणणेण मरेप्पिणु ।। 266 ।। 15 हरने वाले जिनेश्वर ने कहा--"हे सुरवर, सुनो--- तुम दोनों (अर्थात् कैटभ एवं मधु) पूर्व भव में शृगाल शिशु थे और सदा असदश जल वाले झरने के पास रहा करते थे। पनः वे दोनों (श्वगाल-शिश) एक । विनय-गुण सम्पन्न अग्निभूति एवं वायुभूति नामके पुत्र हुए। वहाँ वे श्रावकव्रतों का पालन करते हुए मरे और पुनः सौधर्म स्वर्ग में देव हुए। आयु पूरी होने पर अमर-पद छोड़ा ओर अयोध्यापुरी में मनुष्य शरीर पाकर दृढ़ चारित्रधारी, दयालु एवं व्रतधारी पूर्णभद्र, मणिभद्र नामके दो वणिग्वर हुए। आयु पूरी होने पर नर देह छोड़ी और वे दोनों सहस्रार-स्वर्ग में जन्म लेकर स्थित हुए। वहाँ से भी भाग्य के मारे इन्द्रदृत्ति वाले इन्द्र-पद को छोड़कर वे दोनों चले। अपने माहात्म्य का दूसरा कौन लेखा करेगा? आयु के क्षय होने पर जगत् में कोई किसी की रक्षा कर सकता है? ___कोशलपुर में सुवर्णनाभ नामके राजा के घर में धारिणी माता के उदर से मधु-कैटभ नाम से उत्पन्न हुए। वे ऐसे प्रतीत होते थे मानों सरोवर में सहस्रदल कमल ही उत्पन्न हुए हैं। वे रण में दुर्धर रिपु के लिए रतिपत्ति के समान थे। पत्ता- उम्र कराल तलवार को हाथ में लेकर समग्र मही को वश में कर तत्पश्चात् तुमने असाध्य तपश्चरण किया और सल्लेखना मरण-विधि से मरण कर-।। 266।। 11012. अ. 501 3-4. अ. हुअइ सागि तिरस जाए विगु। (10) 0 शृगाली।
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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