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________________ 14.6.4] 5 10 तर्हिपि अमल- भालवी सरिद्धिया अहीर- गउड़-गज्जणा राहिला अहंगयाल - चंग- कण्ह डेसरा तिलंग - तिउर- सिंधुआ वलुद्धरा ससंभरे - सकेरला समिद्धया जोजाहु 'वास भत्तिवंत सा उड़ा सदक्खिणे ससेणि सयल वेयरा महाकर सिंह विरइड पज्जुण्णचरिउ घत्ता - इयए णरणाहहँ सुललिय वादहँ कण्हहँ पंचसयहूँ रहें । मंगलु वि पुरंधिहिं घोसियउ पुलइयउ सीरि सिरहिरइँ सहु वज्र्ज्जत भेरि पडुपडह वरा मु युमिय मुयंग वलास सया वराड - वोड - लाडमा पसिद्धया । फुरंत-हार कोंकणा महाहिवा । सकच्छयास सोरठ गुज्जरेसरा । वेलाउला महाहवम्मि दुद्धरा । महेसरे समुब्भिमा सचिंधया । कण्णउज्ज उत्तराहिवा हयादुहा" । समागया क्या विवाह आयरा । रई (2) कुरु सुव सरिसह वड्ढिय हरिसहँ कणय-मउड-कंकण करहँ ।। 261 ।। (6) (5) 2 अ" । 3. अ आ । (6) 1. अधु । 2. अ बु' । जायव - वलु मणे संतोसियउ | रूविणि परिउसिय हिय-दुहु । कंसाल-ताल- सरि विलि सुसरा । वज्र्ज्जतिहु - डक्कंगुलि पहया । गौड एवं गजना (गजनी) के नराधिप, स्फुरायमान हारधारी कोंकण के महाधिप, अहंगयल, चंग, कण्ह, डेसर, कच्छ, आस, सोरठ एवं गुर्जर के ईश्वर – स्वामी दुर्धर एवं महासंग्राम के लिए व्याकुल तिलंग, त्रिपुर एवं सिन्धुक तथा समृद्ध सांभर एवं केरल के महेश्वर अपनी-अपनी ध्वजाओं के साथ उपस्थित हुए। कृष्ण के पुत्र-वियोग से अत्यन्त दुःखी एवं कृष्ण-भक्त कन्नौज के उत्तरवर्त्ती जोजाकभत्ति (जैजाकभुक्ति) नरेश आयुध लेकर आये । प्रद्युम्न के विवाह के प्रति आदर - भावना रखकर दक्षिण- श्रेणी के समस्त विद्याधर राजा भी उपस्थित हो गये। [283 घत्ता — इस प्रकार स्वर्णमुकुट एवं कंगन धारी उस नरनाथ प्रद्युम्न का प्रवर्धित हर्षोल्लासपूर्वक विद्याधर पुत्री रतिकुमारी एवं कुरु (दुर्योधन) पुत्री उदधिकुमारी जैसी सुललित भुजाओं वाली 500 श्रेष्ठ कन्याओं के साथ वैवाहिक कार्य प्रारम्भ हुआ ।। 261 ।। (6) प्रद्युम्न का वैवाहिक - कार्य प्रारम्भ (विवाह - विधि ) पुरन्धियों के द्वारा मंगल गान घोषित किये गये । यादवों की सेना ( इससे ) मन में अत्यन्त सन्तुष्ट हुई। श्रीधर (कृष्ण) के साथ सीरी (बलदेव) भी पुलकित हो उठे। रूपिणी का दुःख भाग खड़ा हुआ। भेरी बजने लगी । श्रेष्ठ पटु-पटह बजने लगे। सटि-सटि, विलि-विलि के मधुर स्वरों के साथ कंसाल, ताल एवं ढिविल बजने लगे । धुम-धुमि धुम धुमय स्वर साथ मृदंगम तथा अंगुलि के प्रहत होकर सैकड़ों लासों के साथ डक्क बाजे बजने (S) (1) स्फोटित दु.खा । (2) रतिनाम विद्याधर पुत्री (25 उदधिम्गला दासा 500 कन्या विवाहिता ।
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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