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महा सिंह विरs पज्जुण्णचरिउ
अवरासा (2) ससि - मणिहिमि णिम्मिय गील महाणीलहँ रुइ रिद्धउ चउदुवार अमियासा झरण कली - दंड पर सोहावणु मोतिय- 'झंदुक्कर्हि रेहंतउ छत्त-कलस-धय-दप्पण चमरहिं दिव्वाणवरेहिं पछाइउ अइ सुविसालु महंतु महाकरु पत्ता- जहिं सरहिं भाव णव णट्ट-रसु गय डिज्जइ सुह- भामिणिहिं । गमसरि सर भेयहिं गीउवरु गिज्जइ अमर विलासिणिहिं । । 260 ।।
णं इंद सो हसइ तर्हि थिय । उत्तर- दाहिण भित्तिउ सिद्धउ । जहिं वर दिव्व वि लंबिय तोरण । णिरु विचित्त वित्तहँ मण गवणु । मणि-मऊह दिलिए मोहतउ । कुसुम - रससिएँ मंढिउ भमरहिं । तहिं सुर-पर-वेयर - जणु आयउ । तं सइ कवणु अबहुवि णरु ।
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एरिसे सुरेंद्र गेहयारए
जहिराइँ पंडवा सकउरवा कलिंग - वंग- गंग-गाड - कोरिया
मिपि रिंद सोहरू सा महा भडोह भंडणं णिरउरवा । तु'रुक्क ढक्क-मगह-कस्समीरिया ।
[14.4.4
पश्चिम भाग की दीवार चन्द्रकान्त मणियों द्वारा निर्मित कराई गयी। वह ऐसा प्रतीत हो रहा था मानों पूर्णचन्द्र ही वहाँ स्थित हो कर हँस रहा हो। उत्तर एवं दक्षिण दिशा की भीतें सुरुचि नील एवं महानील नामक मणियों द्वारा सिद्ध की गयीं। उस मण्डप के चारों दरवाजों पर अमृत झरने वाले दिव्य तोरण लटक रहे थे। कदली-दण्डों से वह मण्डप-भवन, चित्र-विचित्र रूप से अत्यन्त सुशोभित हो रहा था। वह ऐसा प्रतीत हो रहा था मानों कामदेव का उपवन ही हो। वह मण्डप मोतियों के झुमकों (गुच्छों) से सुशोभित, मणि-किरणों की दीप्ति से मोहक छत्र, कलश, ध्वज, दर्पण, चमर भ्रमरावलि युक्त पुष्प-मालाओं एवं दिव्य वस्त्रों से आच्छादित था । उसमें सुर, नर तथा खेचर जन आने लगे। वह मण्डप अत्यन्त विशाल, उन्नत एवं शोभा सम्पन्न था. उसकी संरचना क्या किसी बुद्धि-हीन व्यक्ति के लिये सम्भव थी ?
घत्ता- जहाँ (जिस मण्डप में ) मंगलमुखी भामनियों द्वारा नव-नाट्य- रसों के भावयुक्त स्वरों से गम्मतें की जा रही थीं और कहीं अमर विलासिनियों द्वारा ग, म, स, रे, स आदि स्वर भेद वाले श्रेष्ठ गीत गाये जा रहे थे । । 260 ।।
(4) 1. ब. मापु । 2. ब. मा' । 3. अ. गि ।
(5) 1. य. कू ।
(5)
प्रद्युम्न का 500 कन्याओं के साथ विवाह कार्य आरम्भ । इस अवसर पर लगभग 31 देशों के नरेश उपस्थित हुए
इस प्रकार अतीव सुन्दर इन्द्र - विमान की आकृति वाले उस मण्डप में नरेन्द्र-जन बैठे । युधिष्ठिर आदि पाण्डव, भयानक कौरवों सहित महाभटों की भीड़ में बैठे। उनमें से कलिंग, बंग, गंग, णाट (कर्णाटक), कीर, तुरुष्क, टक्क, मगध, काश्मीर, निर्दोष ऋद्धि वाला मालवा, सुप्रसिद्ध वराट (विदर्भ), वोट एवं लाड, आभीर,
(4) (2) पश्चिमदिगा ।