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महाकइ सिंह विरइज पज्जुण्णचरित्र
पंडवह दसारहं पमुह णिव गायणहँ संगीयहँ गिज्जमाण वैयालिय गणहिं पढ़तएहिं मंगल- तूरहिं रह- सद्दले हिं गज्जिउ करsहँ कइयड रवेहिं रणझणझणंत झुणि तालएहिं भमंत मेरि इम-इमिय डक्क वीणा वंस आलावणीहिं
चउप्पदी
सं चल्लिय णिरु उप्मष्ण सिव । कामिणि कर चमरहिं विज्जमा । खुज्जय वामनहिं णडतएहिं वज्र्ज्जतहिं पडहहिं मद्दलेहिं । हू-हू हूवतु कंडु व सरेहिं । रस कसमत कंसालएहिं । खुखुदेक्खु रत्तु करि सज्जियहु डुक्क बहु भेम-गीय - रस दावणीहिं ।
धत्ता — इय पइति स पुरवरे रयणंचिय घरे वरिवलग्गु (2) जुवईयणु । वोल्लंतहिं हलेसहि माअग्गए रहि वम्महु किम पेच्छमि भणु ।। 2551।
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काहिम कुमरु नियंतहिं वढि काम जरु । केणवि कावि भणिज्जइ जेत्तहि मज्झु करु ।। अवलोयहि हे हलेसहि जाणग्गइं सरहि ।
सा सक्किय थिय निय जा एयहो मणु हरइ । । छ । ।
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गाने वाले सुन्दर गीत गाते हुए, कामिनीजन हाथों से चमर दुराती हुईं, वैतालिकगण स्तुति पाठ पढ़ते हुए, कुब्जक वामन नाचते हुए तथा रहस- बधावा (हर्ष - बधाइयाँ) देने वाले दल, मंगल, तूर, पडह तथा मर्दल बाजे बजाते हुए चल रहे थे। करट ( ऊँट ) कट-कट शब्दों द्वारा गरज रहे थे । कम्ब (शंख) धू-धू धृतु स्वर कर रहे थे । तालों से रण-क्षण-क्षणन्त ध्वनि हो रही थी, कंसाल (वाद्य ) रस-कस मसन्त की ध्वनि कर रहे थे। भेरी भम-भम तथा डक्क डमडम शब्द कर रहे थे। सजे सजाये हाथियों पर खुरबुद के खुर (पैर) के समान बाजे हुडुक रहे थे। विविध भेद वाले गीतों तथा रसोद्रेक करने वाली उत्तम बाँस की बनायी गयी वीणाओं के आलाप हो रहे थे। धरता
इस प्रकार जब वे सभी लोग अपने नगर में प्रवेश कर रहे थे, तब उन्हें देखने के लिये ) युवत्तिजन अपने-अपने रत्नजटित घरों के ऊपर चढ़ गयीं और परस्पर में बोलने लगीं कि "हे हले, हे सखि, आगे मत रह में मदन को कैसे देख पाऊँगी?" ।। 255 ।।
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नागरिक जनों द्वारा कृष्ण, रूपिणी एवं प्रद्युम्न की प्रशंसा तथा प्रद्युम्न का युवराज पट्टाभिषेक
चतुष्पदी — कुमार को देखते ही किसी कामिनी को काम ज्वर बढ़ गया। किसी कामिनी ने दूसरी कामिनी से कहा कि—“हे सखि, जहाँ तुम हो वहीं से देखो, मेरे आगे मत सरको।" यह कहकर वह युवती सिसकती ( दीर्घ श्वास लेती ) हुई जिस ओर से वह मनोहर प्रद्युम्न आ रहा था, उसी ओर जा बैठी । । छ । ।
(16) (2) अटालिका।