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________________ 13.15.12] महाकद मिह विरडउ पज्जुण्णचरित [273 पत्ता-- गिय सुव आगमणे गिरु तुह मणे आणंदिउ सारंगधरु । परिपुण्ण मोरह वलेण सहुँ दूरज्झिय णिर दुह-पसरु।। 253 ।। (15) चउप्पदी— ता गयणपणे सुरवर विदइँ । साहु वाउ किउ गव घण गद्दइँ । पुण्णाहिउ वितुमि पुहईसर। जसु एहउ तणुरुहु वि सिरिहर । । छ।। आणंदाणणेण बिहूसंत. बोल्लिवि तलवर रूविणि कतई। कारविय पुरिसोह तुरंत सम्मज्जाविउ मग्गु पपत्त। सिंचिउ चंदणरसेण पवित्तई विक्खत्तइँ ठर रयण विचित्त। पडिपट्टेहिं माल विरविणु घरे-घरे गुडि उद्धरणु करेविणु। कुंकुमेण घरे-धरे छडउल्लउ मोतिय रंगावलिउ सुभल्लउ। तोरण पारियाय पल्लव मय घरे-घरे पुण्ण-कलस पंगणि कय। दहि-दोवलय थालु भरेविणु घरे-घरे जुवइयणु थिउ लेविणु। घरे-घरे महुरु कर वाइज्जइ घरे-घरे कण्ह पुत्तु गाइज्जइ ।। 10 पत्ता- अपने पुत्र के आगमन से सन्तुष्ट मन वाला वह शारंगधर (कृष्ण) अत्यन्त आनन्दित हुआ और सेना के साथ महान् दु:ख को दूर फेंककर पूर्ण मनोरथ वाला हो गया।। 253 1। (15) कृष्णा के आदेश से प्रद्युम्न के स्वागत के लिए सारा नगर सजाया गया। कृष्ण, रूपिणी, प्रद्युम्न, उदधिकुमारी आदि सभी मिलकर बड़े प्रसन्न होते हैं। चतुष्पदी—तब गगनांगण में सुरवरेन्द्रों ने नदीन धनों के नादों द्वारा साधुवाद किया और कहा—"हे पृथिवीश्वर श्रीधर, तुम अलिशाय पुण्य वाले हो, जिसका इस प्रकार का यशस्वी पुत्र है।। छ।। आनन्दित मुख से हँसते हुए रूपिणी के कान्त (पति कृष्ण) ने अपने तलवर (कोतवाल) से कह कर तुरन्त ही नगरी को प्रयत्नपूर्वक सुशोभित करवाया, मार्गों को साफ करवाया, पवित्र चन्दन-सा सिंचित कराया। चित्र-विचित्र श्रेष्ठ रत्नों को पूर दिया गया। प्रति पट्टों से कपड़ों की) मालाएँ बनवाकर घर-घर में गुडिका उद्धरण कराया गया। प्रत्येक घर कुंकुम से छिड़कवा दिया गया। मोतियों की भद्र रंगावली पुराई गयी। पल्लवमय तोरण लटकवाये गये। घर-घर के प्रांगण में पूर्ण कलश रखाये गये। घर-घर में दधि, दूर्वा एवं अक्षतों से भराये गये थाल लेकर युवतिजन खड़ी की गयीं। घर-घर में मधुर तूर बजवाये गये। घर-घर में कृष्ण के पुत्र के गीत गवाये गये। त्रैलोक्य में महान् वाटिकाओं से परिपूर्ण विविध परिधियों से विभूषित जो कृष्ण का एक राजमुल था,
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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