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________________ 2701 15 महाकर सिंह चिरs पज्जुष्णचरिउ घरघरोलि धव घेविरु सुभल्लउ । जिगि जिरंतु दिणमणि सोहंतउ । दुक्क तुरंत रणउहे कुपिवि । चाह दिए झंप खणइँ । इय भारइँ णामिय महि णिरु खामिय हरिणावेहाविद्धहूँ ।। 2511। किंकिणि चमर सयहँ सोहिल्लउ अद्धइंद समरुइ रेहंतउ एरिसु चम्मरयणु उरे चप्पिवि पत्ता- मिल्लेविंगुरहरु (13) चप्पदी- थरहरंतु पायालु वि कंपिउ । गिरि टलटलिय अमरजणु जंपिउ ।। हा हा हा भांत गउ रइवए । पुणु रूविणि पट्ठि धाविव रिउ रहउरे पउ मेल्लिवि ता णिएवि णारएण णहच्छइँ सुंदरयरु विमाणु हे छंडिवि जंपइ चारु चारु जसु लद्धउ तो हरि रोसाणलु उवसंतउ (12) 4, 3" | (13) 1. अ. 'हु'। 2. ब कि । दुहरु । छ । । हणइँ जाम असिवरु उच्चलिवि । सुर- किण्णर पर साव समच्छइँ । लहु उयरिवि कण्हु अवरुंडिवि । यिनंदणु भारहुँ पारखउ । मुणिणा वयण सलिल संसि त्तउ । [13.12.15 अति उत्तम, भद्र अर्धचन्द्र के समान कान्ति ते शोभायमान् सूर्य समान जगमगाता हुआ सुन्दर चर्मरत्न अपने हृदय में चिपकाकर कृष्ण क्रोधित होकर तुरन्त ही रणभूमि में आ हुका । घत्ता--- ध्वजा एवं चामर सहित रथवर को छोड़कर आधे क्षण में ही झाँप ( उछाल) देकर तथा अपने पद - भार से क्षमाशील पृथिवी को उस हरि ने कृपाण के वेध से बींधना प्रारम्भ किया ।। 251 ।। (13) कृष्ण का क्रोधावेग देखकर नारद चिन्तित हो उठते हैं और नभोयान से उतर कर पिता-पुत्र का परिचय कराते हैं। चतुष्पदी - ( क्रोधित कृष्ण के कृपाण से – ) पाताल भी थरथराता हुआ काँपने लगा। पर्वत टलटलाने ( हिलने ) लगे । देवगण बड़बड़ाने लगे। तब हो हो हो करता हुआ रतिवर चला और इससे रूपिणी के भार दुख से भर उठी । । छ । वह कृष्ण झपट कर जब रिपु- प्रद्युम्न के रथ पर पैर रख कर उसे मारने के लिए अपना कृपाण उछालता है तभी नभ स्थित नारद ने ( यह सब ) देखकर देवों, किन्नरों मनुष्यों एवं नागेन्द्रों के समक्ष ही अपना सुन्दरतर विमान आकाश में ही छोड़कर, तत्काल ही उससे उतरकर कृष्ण को आलिंगन में भर लिया और बोले -- " बहुत अच्छा, बहुत अच्छा, जो अपने ही पुत्र को मारने का प्रयास कर यश प्राप्त करने जा रहे हो । " मुनि नारद के इन वचन रूपी जल से संसिक्त होकर हरि-कृष्ण की रोणाग्नि जब शान्त हो गई तब नारद ने उसका
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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