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________________ 268] महारुद सिंह विरईउ पज्जुण्णचरिउ 113.11.5 10 सो होएदि महाघण सण्णिा भुवणोयरु पूरंतु णिहिलु णहु । गज्जई गडगड़-रउरव णद्द तडयडत तडिवि सरिस सद्दई। पंचवण्णु उगु सुसोहणु वलय वि सक्क-चाउ' मणमोहणु। मुसलाधारहँ-धारहँ वरिसइ णं हुववहहो पाण आयरिसइ। दिम्मुह-मलिण पर्यड तमोह वि रेल्लिउ हरवलु वड्डि कोहुवि। महिहिं चहुट चक्क थिय रहवर । बुड्डु जलोहें णरवर हयवर। 'खुत्त कलहि भड मत्त महागप जा केसवेण मुक्क वायत्यु वि वारुणत्यु किउ तेण णिरच्छुवि। णं जुबंत पवहो हइ पेल्लिउ सबलु सचिण्णु ससाहणु डोल्लिउ । उद्दाविय धय छत्तायासहो पत्तणिव होइव चमु4) रइ तोसहो। णहे णिवडत विमाण णिएविणु भीसम-सुअ-सुएण चिंतेविणु । घत्ता- आमेल्लिउ गिरिवरु भीसण दुद्धरु पचणु ते णाउ सारिज। चूरंतु वि पक्खुवि रणउहे दक्खु वि णउ पवणेण णिवारिउ ।। 250।1 महाधन के तुल्य वह वारणास्त्र भुवन के मध्य को पूरता हुआ सम्पूर्ण आकाश में भर गया। वह दारुणास्त्र गरजने लगा। गड़गड़ाकर सैरव नाद करने लगा, बिजली के समान तड़तड़ा कर शब्द भरने लगा। आकाश में पंचवर्णी उत्तुंग अत्यन्त सुन्दर एवं मनमोहक गोलाकार इन्द्रधनुष बन गया। उसी समय मूसलाधार वर्षा होने लगी। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानों वह वारुणास्त्र अग्नि के प्राणों को ही खींच रहा हो। दिशाओं के मुख समूह को मलिन करता हुआ प्रचण्ड अन्धकार समूह रेलमठेल कर रहा था, जिस कारण हरि के सैन्य का क्रोध और भी बढ़ने लगा। मही में रथों के चक्र चहुड कर (फँसकर) जल के प्रवाह में नरवर और हयवर डूबने लगे। भट क्षुब्ध हो उठे, मत्त महागज चिंघाड़ने लगे। तब केशव ने (अपना) पवनास्त्र छोड़ा जिसने वारुणास्त्र को निरर्थक कर दिया। वह ऐसा प्रतीत हो रहा था मानों वह पवनास्त्र युगान्तकालीन आँधी द्वारा पेला गया हो। उस पवनास्त्र से प्रद्युम्न की सेना अपने वजा आदि चिहनों एवं अन्य साधनों सहित डोल उठी। उस रतिवर_प्रद्यम्न की सेना. ध्वजा-छत्र पत्र-समह के समान आकाश में उड़ने के कारण त्रस्त हो उठी। पुनः आकाश से गिरते हुए विमानों को देखकर भीषम-सुता रूपिणी का वह पुत्र-प्रद्युम्न चिन्तित हो उठा। पत्ता- भीषण दुर्द्धर उस पचनास्त्र के छोड़े जाने पर श्रेष्ठ पर्वत उखड़ गये। रणभूमि में उन पर्वतों को प्रत्यक्ष ही चूर-चूर होते हुए देखकर भी कोई उस (पवनास्त्र) को रोक न सका।। 250 ।। (11) i. अ. चु। 2. अ. सो। 3-4. अ* | (11) (3) समूह 1 (4) मगरावण हर्ष उत्पादक (5) सयाग मागें ।
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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