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________________ 13.11.4] 10 15 महाकर सिंह विरह पज्जुष्णचरिउ एम भविणु धणु गुण सज्जिउ किउ कलयलु वर भडयण विंदें सुमरिज हुव व हत्थु ता ढुक्कउ हुंकारेण पत्तु तं साह पुणु पज्जलिउ जल गुरु जालहिं ह - धूमेण अमर संदाणिय(3) फुट्ट तडत्ति वंस धम-छत्तहँ काहमि जलइ गरिदाँ णि वसणु सिहिणा संताविउ सयलु-वियलु कंg - रवेण उवहि णं गज्जिउ । फुट्टण मणु हु तूर-निणदें। पंकयणाहें लेवि पमुक्कउ । वेढेविणु हम-गय-रह-वाहणु । उड्दिर णिविड फुलिंगो मालहिं । गय काम रणउ केणवि जाणिय । लग्गु जलणु हय-र-गय-गत्तहँ । तुट्टवि पडइ काहं वर- भूषणु । नियंवि ताम मयणु वि कयरण छलु । घसा — दप्पभडु थिउ विहsफ्फडु भ्रमइ सेणु उब्वेंविरु । पयि सुमहाय धनु राहायइँ कामइँ साहारिउ थिरु ।। 249 ।। (11) उप्पदी- वारुणत्थु () पुणु मुक्कु पयत्तइँ । रतुप्पल-दल दीहरणेत्तइँ ।। महुसू अहो ( 2 ) सेण्णवरि चल्लिउ । मलय- समुद्दु णाइँ उच्छल्लिउ ।। छ । । [267 किया गया। तब कृष्ण में आग्नेयास्त्र का स्मरण किया। उसके प्राप्त होते ही (हाथ में) लेकर छोड़ा। वह आग्नेयास्त्र हुँकार भरता हुआ प्रद्युम्न के साधनों के पास पहुँचा और उसके हय, गज, रथ- वाहनों को घेर लिया । पुनः उसकी बड़ी-बड़ी ज्वालाओं से अग्नि प्रज्ज्वलित हो उठी। उससे निविड़ फुलिंगों की मालाएँ उठीं। आकाश धूम से भर गया। देवगण सन्तप्त हो उठे। रण में कितने लोग गतकाय हो गये ( मारे गये ) यह कौन जानता है? ध्वजा - छत्रों के बाँस तड़ से टूटने-फूटने लगे। हथों, मनुष्यों एवं गजों के शरीर जलने लगे। कृष्ण ओर से युद्ध करने वाले राजाओं के वस्त्र जलने लगे । कृष्ण के श्रेष्ठ आभूषण टूटकर गिरने लगे। इस प्रकार जब भयानक अग्नि से सन्तप्त होकर सभी जन विकल हो उठे, तब उसे देखकर मदन ने भी रण-पद्धति में छल से कार्य किया । धत्ता--- दर्भ से उद्भट विकट एवं दूसरों को उद्विग्न करने वाली (प्रद्युम्न की) सेना वहाँ भ्रमण करने लगी । बढ़े हुए सुप्रभाव वाला तथा धनुष की सहायता से वह कामदेव (प्रद्युम्न) भी वहाँ सम्भल कर स्थि हो गया। 249 ।। (11) प्रद्युम्न ने वारुणास्त्र छोड़ा, उसके विरुद्ध कृष्ण ने अपना पवनास्त्र छोड़ा चतुष्पदी---- तब लालकमल-पत्र के समान दीर्घ नेत्र वाले उस मदन ने प्रयत्नपूर्वक वारुण (जल) अस्त्र छोड़ा, जो मधुसूदन की सेना की ओर चला । वारुणास्त्र का वह जल प्रलयकालीन समुद्र के समान उछालें भरने लगा। छ। (10) 3. अबलु। (10) (3) पीडितः। (11) (1) मेघवानं । (2) नारायणस्य ।
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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