________________
260]
महाकाइ सिंह विरहउ पजमुण्णचरित
[13.5.5
5
इय कोवग्गि' जलिय णरणाहहँ रइउ महाहन वाहिय वाहहँ । मागु ण लद्ध पड़िय गय-गत्तहँ कणियार कुंभयलहँ कर-दंतहँ । भाग-रहेहिं माग्गु संचारु वि वढि हिर-महण्णउ फारु वि । किलिकिलंत वेयाल पणच्चिय जोइणि-गण वस-कद्दम चच्चिय । पलया लद्भुवि सिव पुक्कारइ हुव रसोइ णं जमु हक्कारइ।। दुसर-सर धोरणिहिं समाय कहिदि मयंग महुव कप्पिय हय । चुरिउ-चाउरंगु-वलु कण्हहो भुवणेकल्ल मल्ल जय-तण्हहो। मोहिय-मोहणेण दिव्वत्थ!
मुणिउ पवंचु ण णवइ सस्थ । णिव णिवडिय भीमज्जुण महि-मंडले हा-हा रउ उठ्ठि शह-मंडले । पडिय जमल) णं जम गोयरि किय विलिउ सीरि पणयि हरि सिय"। सुडहहो उवरि सुहडु हयवरि हउ रहहो इवरि रहु गयहो महागउ।
णरवइ बरि णरिंद सर-सल्लिय थिय जीविय बिमुक्क णउ चल्लिय । पत्ता- किंकर सयण सहोरहँ पिाहयहँ रेहड़ किण्ह कह।
णं असहाउ भमंतु एक्कल्लउ भवे जीउ जह।। 244।।
इस प्रकार कोधाग्नि में जल कर नरनाथ— राजाओं ने अपने-अपने घोड़ों को सुसज्जित कर महासंग्राम प्रारम्भ किया। रणभूमि में आये हुए गजों के शरीरों से मार्ग अवरुद्ध था। शत्रुओं ने उनकी सूंड एवं दाँत तोड़ डाले। टूटे रथों से मार्ग संचार भी भग्न हो गया। रुधिर का विशाल समुद्र बढ़ गया। किलकिलाते हुए बेताल नाचने लगे। योगिनी-गण वसा रूपी कर्दम से चर्चित होकर नाचने लगे। माँस की लोलुपी शृगाली पुकार रही थी। मानों यमराज को बुला-बुलाकर कह रही हो कि रसोई तैयार हो गयी है। आओ आओ। "कहीं तो दुर्द्धर बाणों की नोकों से मारे हुए हाथी पड़े थे और कहीं कटे हुए घोड़े पड़े थे। जय की तृष्णा वाला जो कृष्ण भुवन में अकेला मल्त समझा जाता था। उसी कृष्ण का चतुरंग दल-बल चूर दिया गया। प्रद्युम्न के मोहन नामके दिव्य अस्त्र ने सबको मोहित कर दिया। कृष्ण के नरपतियों ने प्रद्युम्न के इस शस्त्र के प्रपंच को समझा ही नहीं। महीमण्डल में जब भीम, अर्जुन राजा भी गिर पड़े, तब नभमण्डल में हाहाकार मच उठा। नकुल-सहदेव जुगल मल्ल भी पड़ गये, मानों वे यम के गोचर ही हो गये हों। सीरी (बलदेव) भी जा गिरा। मानों हरि..-कृष्ण की शोभा ही नष्ट हो ।। सुभट के ऊपर सुभट, घोड़ों के ऊपर घोड़े, रथ के ऊपर रथ एवं गज के ऊपर महागज चढ़ गये। नरपति एवं नरेन्द्र बाणों से विंध गये और प्राण छोड़कर वहीं निश्चल हो गये। पत्ता- किंकर, स्वजन एवं सहोदरों के नष्ट हो जाने पर कृष्ण कैसा सुशोभित हो रहा था? उसी प्रकार जिस
प्रकार कि असहाय यह जीव भव में अकेला घूमता-भटकता रहता है।। 244 ||
19 |
"ग। 2.ब पि।
(5) (:) A1 (2) दलित । (3) ॐ नकुल-सदेवौ। (4) अ
बलि बलंदन। जागोभा।