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13.5.3]
महाकद सिंह विरहाउ पज्जपणचरित
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हणेवि पसक्कहिं किय सय जज्जर चक्केहिमि कप्पिय उर-सिर-कर। जुण्ण तिणहो समाणु तणु मण्णिवि पहरहिं णिय जीवउ अवण्णिवि । पच्चारंति कण्ह कि सेरउ
हणु-हणु पउरि सुदेक्सहिं तेरउ । सीराउह उवडिय भड गोंदले किं वावरहि ण वड्ढिए कंदले। भीम-भयंकर गय दरिसावहि पहणहिं पच्छ तुरंतउ आदहि । सुणि सहएव वीररस-रंजिय पयडहिं असिफरु जे रिउ गजिय। णउल णिहालहि कोंतम करयले अवर वि जे णरवइ किण्हहो वले।
ते एक्केक्कमेक्क दुव्बोलिय असरिस सत्थ-पहारहिं पेल्लिय। घत्ता. अदद पहले हिं हिला उत्त कि मीसहिं ।
___णहे भमंत णिवडत चंदविंद इव दीसहि ।। 243।।
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चउप्पदी- केणवि कोबि णिवारिङ खंचहि णिययकर
मा णिठुर स पहारइएँ हणहि एहु णरु । कपंतु वि अवलोयहि पहरण वज्जियउ, कापरु-मणे विणु मणे वरभडु वज्जियउ।। छ।।
कर देते थे। चक्राकार अस्त्रों द्वारा हृदय, सिर और हाथ काट डाले। अपने शरीर को जीर्ण तृण के समान समझकर तथा प्राणों की अवगणना करके वे (शत्रु-सैन्य) पर प्रहार करते थे। कृष्ण अपने सेवकों को चिल्ला-चिल्ला कर कह रहे थे...कि शिथिल क्यों हो रहे हो, मारो, मारो। आगे के शत्रुओं को भलीभाँति देखो। "हे सीरायुध, तुम भटों के यूथ में उतरो। यदि कन्दल में वृद्धि न हो तो व्याकुल होने से क्या लाभ? हे भीम, भयंकर गदा दिखाओ। प्रहार बाद में करना, अभी यहाँ तत्काल आओ वीर रसरंजित हे सहदेव, सुनो, जो रिपु को गाँज देने वाला है, उस असिफर (छुरी) से (शत्रु-सैन्य पर) प्रहार करो। हे नकुल, अपने हाथ के कुन्त की ओर देखो। (इसी प्रकार) कृष्ण की सेना में और भी जो-जो नरपति हैं वे भी तैयार रहें। इसी प्रकार दुष्ट बोली वाले मिलकर एक दूसरे को कठोर वचन बोलने लगे कि असदृश शस्त्रों के प्रहारों से पिल पड़ो। घत्ता..- अर्धचन्द्र (कृष्ण) के प्रहारों से छत्रों की क्या कहें (असंख्य) शीर्ष भी कट-कट कर गिरने लगे। वे ऐसे दिखायी देते थे, मानों आकाश में घूमते हुए चन्द्र-वृन्द ही गिर रहे हों ।। 243 ।।
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___ कृष्ण की चतुरंग सेना नष्ट होने लगी चतुष्पदी—किसी (भट) के द्वारा कोई दूसरा (भट) दूर हटाया गया और उसके द्वारा उसे कहा गया कि "उस
बेचारे की ओर से अपना हाथी खींच, इतना निष्ठुर मत बन, अपने प्रहार से उस नरभट को मत मार, देख वह अस्त्ररहित होने से काँप रहा है ।" पुन: अपने मन में उसे कायर मानकर उसने (अन्य) वर भटों को भी डाँटा।। छ।।