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महाकद सिंत त्रिराज पाण्णवरिउ
[13.3.9
पडिय कवंध खुड़िय सिर पयकर चलिय-वलिय अण्णोण्णु वि णरवर । तुडिय-पडिय तणु-ताण पयंडहँ मिलिय खलिय तणु-खंड विहंडहँ। खुत्त-गुत्त रस वसमइ कद्दमे रेल्लिय रुहिर जलहँ रणे-दुद्दमे ।
वणिय धुणिय णिहणिय असि-घायहिं दलिय-मलिय विर्यालय वे भायहिं । घत्ता- हय-हिंसइँ मयगल गज्जियइँ सुहूडहँ कलयन सद्दई।
णं रसिउ बयत मुक्सिए, वैसरिस सूर३ ६३ ।। 2-2।।
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चउप्पदी- इय अप्पपरि थिय रणे किण्हहो किंकरइ,
सेल्ल-भल्ल वा वल्लहँ आऊरिउ सरहँ। भग्गु-लग्गु उम्मग्गहें मणसिय सेण्णु कह अमरह,
महिउ महंतज सायर सलिलु-जह ।। छ।। णवणिसिय णिविड वाणासणे रिउ पब्बयहँ णाई वज्जासणे। परिपेसति जोह जग दुद्धर
उठ्यि मंधवंत कायर-णर । मुक्क-हक्क-लल्लक्क भयंकर णिहणिय वणिय चउम्भुव किंकर । उस दुर्दम रण में कटे हुए गुप्त रस-वसा-मेद रूमी कर्दम आदि रूधिर रूपी जल में बह रहे थे। असि के घातों से दोनों ही दलों के योद्धा घायल हो रहे थे, धुने जा रहे थे, मारे जा रहे थे, दले जा रहे थे, मले जा रहे थे एवं विकल किये जा रहे थे। घत्ता- घोड़े हींसते थे, मदोन्मत्त हाथी गरजते थे, सुभटों के कल-कल शब्द हो रहे थे। मानों रसलोलुपी भूखे
कृतान्त (यमराज) ने विसदृश (प्राण-लेवा) तूर-निनाद ही कर दिया हो।। 242 ||
तुमुल-युद्ध । कृष्ण अपने भटों को सावधान कर स्वयं अपना रण-कौशल दिखलाते हैं चतुष्पदी—इस प्रकार कृष्ण के किंकरों ने रण में अपने को स्थिर करके उसे सेल, भाला, बल्लम एवं बाणों से
आपूरित कर दिया। इस कारण मनसिज-प्रद्युम्न की सेना उन्मार्ग में भागने लगी। भागते समय वह कैसी लग रही थी? उसी प्रकार जिस प्रकार की अमरों से पूजित महान् सागर का जल बहकर उन्मार्ग
की ओर जाने लगता है।। छ।। तब कृष्ण किंकरों ने शत्रु सेना को नवीन तीक्ष्ण सघन बाणों के आसन पर पटक दिया। ऐसा प्रतीत होता था मानों पर्वतों पर वज्रासन ही गिर पड़ा हो। जगत में दुर्द्धर (कृष्ण) के योद्धागण धक्कम-धुक्की कर रहे थे। जिस कारण शस्त्रधारी कायर-मनुष्य (गिर-गिरकर) उठ रहे थे। चतुर्भुज (कृष्ण) के भयंकर किंकर हॉक छोड़ते शत्रु-सैन्य को ललकारते थे, मारते थे और (उन्हें दूर) हटा देते थे। मारकर ही खिसकते थे। सैकड़ों को जर्जर
(392ब "।
(३) (5) त्रुरित