________________
13.3.8]
महाका सिंह विरइज पज्जुण्णचरित्र
1257
केवि ढुक्कु परिमुट्टिा पहारहिं असिधेणु वहि केवि णिरु सारहिं केणवि कोवि सुहडु आयामिउ चलण हणेवि णहंगणे भामिउँ।
वावरंति केवि वण-वेयणउर पडियहँ सिरे कुसुम इमि घिबहिं सुर । घत्ता. कासुवि सिरु महियले पडिउ अवगणिणवि धडु संचलिउ।
महो भुवदंड सहाइँ कि एण वि जो रिउ मिलिउ ।। 241 ।।
15
चउप्पदी— केणवि सत्तिवि सज्जि। ६.२७. रिउ ..,
केणवि दसणुप्पाडिय मय मत्तहो गयहो। केणवि ससरु-सरासणु कासु विहंजिय)
केणवि पियरहु लेविणु पडिरहु भंजियउ।। छ ।। वेहंडवि धयदंड विहंडिय मुडिय छत्त-चमरहिं महि मंडिय। गय-घय घुलिय ढुलिय महि णिवड़िय भड-थड भिडिय दडिय णिरु दवदिय। कडबड खेण पलोट्टिय रहबर ता सिउ 'संकुस्सु सेसु कपिय धर।
रसिय सुतसिय खसिय कायर-गर भभिय-दमिय हय-थट्ट सुखरखुर"। थे मानों देवगण आकाश से पुष्प-वर्षा कर रहे हों। पत्ता – किसी का सिर (कट कर) महीतल में पड़ गया तो भी उसकी अवगणना कर उस का धड़ (यह
सोचकर) आगे चलता रहा कि “मेरी सहायक मेरी महान् भुजाएँ ही हैं (सिर नहीं), अत: आगे जो भी रिपु मुझे मिलेगा, उसी का वध इनके द्वारा करूंगा।" ।। 241 ।।
तुमुल-युद्ध चतुष्पदी—किसी ने रिपु को जीतने के लिए शक्ति सुसज्जित की। किसी ने मदोन्मत्त गज के दशन (दाँत) उखाड़
लिये। किसी ने बाण सहित धनुष ले लिया, किसी ने किसी को भग्न कर दिया। किसी ने अपना रथ
लेकर प्रतिरथ को तोड़ दिया ।। छ।। ध्वज खण्ड़ों को खण्ड-खण्ड कर नष्ट कर दिया गया। टूटे हुए छत्रों एवं चमरों से मही मण्डित हो गयी। गजों की घटा घूमने लगी, लुढक कर पृथिवी पर गिरने लगी। भटों के समूह डट कर भिड़ने लगे और पड़ने लगे। कट-कट शब्द करने वाले अस्त्र द्वारा रथवर उलट दिए गए। उससे शिव एवं शेषनाग सशंकित हो उठे। पृथिवी काँप उठी। रसिक जन त्रस्त हो उठे। कायर जन खिसया गये। तीक्ष्ण खुर वाले घोड़ों के समूहों को घुमा-घुमा कर दमित कर डाला गया। जिन नरवरों के सिर, पैर एवं हाथ नष्ट हो गये, उनके कबन्ध नाचने लगे और घूम फिर कर परस्पर में टकराने लगे। उन प्रचण्डों के शरीर के कवच टूट-टूट कर (भूमि पर) पड़ने लगे। और (बिना कवच के) मिल-मिलकर एक दूसरे के शरीर के खण्ड-खण्ड करके चूर करने लगे। (29 I.ज च. 'गा।
(3) th) जनमुष्टि । (7) वेदना आतुर । (४) सिरेण - सिह । 139 1. अ ससंक।
13) 11) देसहीततम् । १2) ऑीमाम् । विटना । (4) ती।