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________________ 256) महाकऽ सिंह विरइउ पज्जुषणचरित [13.1.12 धत्ता– मिलियइँ विण्णिदि साहणइँ किय कलयलइँ पवढिय कोहइँ। बाहिय णिय-णिय वाहणई दट्ठोठ्ठ पडिवल संखोहई।। 240।। चउप्पदी- इय पहरंत रणंतरे णरवई कुद्धमणा णियहि णहंगणे रण-रस विहसिय अमरगणा”। पढम भिडम्मि भिडंतहिं आहवे दुविसहि सघर धराधर समुदा वि कंपियसपलर्माहें । । छ।। कहिं जोहेहिं - जोह णासयहिं दलवट्टिय फणिद-सम कायहिं । कहिमि रहेण-रहु वि मुसुमूरिउ स-हउ स-सरहि स-धउ दि चूरिउ । कहि धाणुक्कु रुद्ध धाणुक्कइँ फारुक्कु वि कहि रिउ फारुक्कइँ। आसवारु घर पडिय सवारइँ मयगलु-मयगलेण अणिवार। खलिउ कोंत करु-कोत सहायइँ पहणिउ कोवि केण गय-धाय। केसइँ लेवि कोवि अच्छोडिउ केणवि कहो सिर-कमलु वि तोडिउ । पत्ता दोनों के साधन (सेनाएँ) मिले. दोनों पक्षों के भट कल-कल करने लगे. उनका परस्पर में क्रोध बढ़ा। दोनों पक्षों ने अपने-अपने वाहन तैयार किये तथा प्रतिपक्षों ने क्षुब्ध होकर अपने ओठों को काट लिया।। 240 ।। प्रतिपक्षी सेनाओं का तुमुल-युद्ध । कबन्धों का पराक्रम चतुष्पदी—इस प्रकार राजागण क्रुद्धमन होकर रण में प्रहार कर रहे थे। आकाश में रण-रस से हँसते हुए देव-गण उन्हें देख रहे थे। प्रथम भिड़न्त में भिड़ते ही दुर्विषास्त्रों से वे आहत हो रहे थे और इस प्रकार भवन, पर्वत, समुद्र सहित समस्त पृथिवी कम्पित हो रही थी।। छ।।। कहीं फणीन्द्र समान काय वाले तथा अत्यन्त तीक्ष्ण वाणों द्वारा योद्धागण योद्धाओं के दल को रौंद रहे थे, कहीं रथ ने रथ को चूर कर दिया। कहीं घुड़सवारों ने घुडसवारों को घोड़े एवं ध्वजा सहित चूर-चूर कर डाला। कहीं धानुष्कों ने धानुष्कों को रोक दिया। कहीं पदाति फारुकों (तीक्ष्ण फरसा चलाने वालों) ने शत्रु-फारुकों को रोक दिया। असवार असवारों पर टूट पड़े। हाथी अनिवार हाधियों से जा भिड़े। हाथों में कुन्त रखने वाले कुन्त के आश्रितों पर छूट पड़े। कोई किसी के गज के आघात के द्वार। हना गया। किसी ने किसी के केश पकड़कर उसे पछाड़ दिया। किसी ने किसी का सर-कमल तोड़ दिया, कोई वज्रमुष्टि के प्रहारों से ढुक गया। कोई सारभूत असिधेनु (छुरी) लेकर लड़े। किसी ने किसी सुभट को ऊपर झुला दिया और लात मारकर उसे आकाश में घुमा दिया। कोई भट द्रणों की वेदना से पीड़ित होकर रोने लगे। कटे हुए सिर इस प्रकार गिर रहे (2) (1) को ध्वसान् । (2) देवसमूह। 13) समुद्रासकल पृथितीकर्षित।। (4) सधोटक. (5असवार गजुगत मू।
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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