SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 387
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 254] महाका सिंह विराउ फजुण्णचरित इय पज्जुषण-कहाए पपडिय धम्मत्थ-काम-मोक्खाए बुह रल्हण सुवे कइ सीह विरइयाए पन्जुण्ण-वसुएव-संगाम-वण्णणो णाम बारहमी संधी परिसमत्तो। ।। संधी: 12 ।। छ।। पुफिया जात: श्री जिनधर्मकर्मनिरत: शास्त्रार्थ सर्वप्रियो, भाषाभिः प्रवणश्चतुर्भिरभवत् श्रीसिंहनामा कविः । पुत्रो रल्हण पण्डितश्च मतिमान् श्री गुजरागोमिह, दृष्टिनिचरित्रभूषिततनुवंशे विशाले बनौ ।। छ।। ___ इस प्रकार धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष को प्रकट करने वाली बुधरल्हण के पुत्र कवि सिंह द्वारा विरचित (प्रस्तुत) प्रद्युम्न-कथा में "प्रद्युम्न-वासुदेव का संग्राम वर्णन" नामकी बारहवीं सन्धि समाप्त हुई। । सन्धिः 12 ।। छ।। पुष्पिका— कवि-परिचय श्री जिनधर्म-कर्म निरत, शास्त्रार्थ में सर्वप्रिय चतुर्विधभाषाप्रवण, सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान एवं सम्यग्चारित्र से विभूषित शरीर वाला तथा गुर्जर प्रदेश की विशाल भूमि के गुर्जरवंश में उत्पन्न सिंह नामक (सुप्रसिद्ध) कवि हुआ जो पण्डित रल्हण का मतिमान् पुत्र था। 1 छ।।
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy