________________
12.26.113
5
10
घता
महाकर सिंह विरहउ पज्जुण्णचरिउ
धत्ता- इए एक्केण पहाण परिधावहि भइ समेर किर । तो तहिं केव चवंति मा वच्चहु भो थाहु किर । । 236 ।। (26)
कोवि अजउ भडुयउ समरंगणे इयरु हरइ किं किण्हहो भामिणि ता रणभेरि तुरिङ अप्फालिय अइरोसद्ध 'वीर परि सक्किय अद्भक्किय सकज्ज मेल्लेविणु धीर-पयंड़-चमंड रण-भर धर केवि कुमार कुछ संचलिय केहिमि कवउ भडहिं णियउरे किउ हणु-हणु-हणु णरवर जयंतिवि
परिमाणहुँ मा मुज्झहो नियमणे । रूविणि- सिसु पहल गइ - गामिणि ।
सुहँ भवित्ति संचालिय । जे संगाम - साएहिं आसंकिय । गयरायणमिम वच्चेविणु । सेल्ल - भुसंढि खग्ग-पहरण किर। परभारेण वसुंधर डोल्लिय । अहिणव-रण-रसेण कुद्दिवि गउ । णिगय पुरहँ पउलि पेल्लतिवि ।
धत्ता— सव्वर तूर सय दिण्ण सज्जिय रहवर गय तुरया । मिलिय रिंद असेस पवशुद्धय महाधया ।। 237 ।।
(26) 1. अ. धी। 2-3 अ दुद्धर ।
[251
इस प्रकार निश्चयपूर्वक एक-एक करके जब प्रधान भट समर की ओर दौड़ने लगे, तभी वहाँ कोई-कोई कहने लगे " मत जाओ हे भाई, रुक जाओ ? ।। 236 ।।
(26)
रणभूमि के लिये प्रयाण की तैयारी, हवा में महाध्वज अँगड़ाइयाँ लेने लगा
कोई अजय भट समरांगण में (प्रतिपक्ष से ) बोला- “ ( अपने की पहिली भामिनी गजगामिनी रूपिणी का अपहरण रूपिणी - शिशु है?" तभी तुरन्त ही रणभेरी बज उठी। उसने मानों सुभटों की भावनाओं को ही संचालित ( चंचल ) कर दिया ।
अनेक वीर शक्तिशाली तथा जो संग्राम के स्वाद शंका रहित थे वे अत्यन्त रोष से भरकर अपने-अपने निजी कार्यों को अधूरा ही छोड़कर (उलटे भड़काने वालों से ) रणांगण में बचकर चल दिये। रण में दुर्द्धर प्रतापी, धीर, प्रचण्ड कोई कुमार सेल, भुसुण्डि खड्ग, प्रहरण, धारण कर क्रोधपूर्वक चले, जिनके पद भार से पृथिवी डोल उठी । किन्हीं भटों ने निज वक्ष पर कवच धारण किया और वे अभिनव रण के रस से कूदते उछलते चले । वे नरवर “हनो, हनो, हनो" चिल्लाते हुए तथा प्रतोली (द्वार) को पेलते हुए नगर के बाहर निकले । घत्ता— सैकड़ों प्रकार के सभी बाजे बज उठे, श्रेष्ठ, रथ, हाथी, घोड़े सजाये गये। सभी नरेन्द्र परस्पर में मिले और पवन में महाध्वज अँगड़ाइयाँ लेने लगा ।। 237 |
।
को) पहिचान। अपने मन में मोहित मत हो । कृष्ण (प्रद्युम्न ) को छोड़कर अन्य कोई कैसे कर सकता