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________________ 250] महाकद सिंह विराइड पज्जुण्णचरिज [12.24.11 पत्ता- इय आयपिणवि सयल वाडवग्गि जिह पज्जलिय । __णं जुवं ते पक्खुहियवि सब्वत्थ वि सयलवि चलिम।। 235।। (25) हलहरु कोवाणले पज्जतियउ पलय-पयंग समुव संचल्लियउ। ता गंडस्स' जीय संजुत्तउ उठि सुठु पच्छु गज्जंतउ। भीमु भयंकरु लउडि बिहत्थउ धम्मु-सुबहो णिय णाविय मत्थउ । सहएउ वि असिफर संजुत्तर उलु वि कोतु कलंतु तुरंतउ । अवसर समाग सुहड सुपयंडवि णिग्णय णं पमत्त वेयंडवि। को वि णियइ णिय भुव-भीसावण जे रिउ णरवर-मण भेसावण। कुवि आयरिसइ णिय धणु-हर गुणु रेहइ णं सेंदाउहु णव-घणु। कोविर पर सवस कुचउ ण गिपहइ । पुलइय-वउ पहिरिउ रणे मण्ण। कोदि आरुहिउ अत्ति करि-कंधरे णिय-मणु दितु महाहवे दुद्धरे। केगा यि तणु ता लव मुफ्फु डबिउ मणि चिंतेविणु। एहु पुणु अंगरक्खु लोहिठुवि । मई पहु कज्जे दिण्णु वउ सद्भुवि । 10 पत्ता- यह सुनकर (राज्यसभा में स्थित) सभी की क्रोधाग्नि उसी प्रकार भड़क उठी, जिस प्रकार कि वाइवाग्नि । अथवा मानों (ग्रीष्मकालीन) मध्याह्न का सूर्य क्षुब्ध हो उठा हो और (उससे प्रभावित होकर) समस्त (चल-अचल) पदार्थ चंचल हो उठे हों। ।। 235 ।। (25) रणभूमि के लिये प्रयाण की तैयारी हलधर कोपानल से प्रज्ज्वलित हो उठा और प्रलयकालीन सूर्य के समान वहाँ से उठकर चल पड़ा। उसके पीछे गर्जना करता हुआ गाण्डीव-धनुष की ज्या सहित अर्जुन तैयार होकर उठा, लकुटि (गदा) हाथ में लेकर भयंकर भीम ने धर्मराज युधिष्ठिर को माथा नवाया। सहदेव भी स्फुरायमान असि लेकर और कल-कल करते हुए कोन्त को लेकर नकुल भी तुरन्त ही वहाँ से निकला। उस समय सभी प्रचण्ड भट इस प्रकार निकल पड़े मानों प्रमत्त हस्ति-समूह ही निकल पड़ा हो। किसी ने अपनी भीषण डरावनी भुजाओं की ओर देखा जो कि पराक्रमी शत्रुजनों के मन को भी डरा देने वाली थीं। कोई धनुर्धर अपने धनुष की डोरी को खींच रहा था। वह ऐसा सुशोभित हो रहा था मानों इन्द्र-धनुष वाला नवीन मेघ ही हो। कोई भी (नरश्रेष्ठ) अपने वश में न था। यद्यपि किसी ने कवच धारण नहीं किया था, फिर भी पुलकित वदन होने के कारण वे अपने को कवच धारण किया हुआ जैसा मान रहे थे। कोई दुर्धर महायुद्ध में अपने मन को लगाये हुए तत्काल ही हाथी के कन्धे पर सवार हुआ और किसी ने अपने शरीर पर त्राण (ढाल) लेकर मन में यह विचार कर प्रतीप (उल्टा) छोड़ा कि-.."लौह का बना हुआ यह अंगरक्षक मेरे प्रभु के प्रयोजन को भलीभांति पूर्ण करेगा।' (24) (4) पोभित । (25) 1. अ.ब. स्प।
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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