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________________ 12.24.10] मनका सिंह विरइउ पञ्जुण्णचरित [249 10 घत्ता— आवहि ममि समाणु करि पसाउ परमेसरि । जहिं स-सुण्ह तुव भाइ दावमि तुरिउ गहतरे।। 234 ।। (24) एम भणेवि कर-कमलि धरेविणु णिग्गउ सह णिय भवणु मुएविणु । गउ सुपंडु चंडु तेत्यु वि लहु जहिं अस्थाणे परिट्ठिर महुमहु । आहासइ सुणि किण्ह-हलाउह जायव-भोयय) पपंड सुवहो सह । अवर वि जे दुद्धर बलवंतवि मंडलीय वर-भड सामंतवि। पच्चारिय असेस आयण्णहुँ जइ छलु कुलु वलु णियमणे मण्णहुँ । ता किं ण सबल तुरिउ कुदि लग्गहो णिय-णिय पहरण लेविणु वग्गहो। मइँ अवहरिय णियहु भीसम-सुय अइ-सुसील वेल्लहल-सरल भुव । चेईवइ(2) वराउ णिहणेविणु छले णवेवि थिय घरे आवेविणु। सल्वहँ रणे भोयण धणि देविणु पुणु पछइँ परिसक्कमि लेविणु। हउँ खगेंदु एत्थहो णउ चल्लमि जा ण सयल तुम्हइँ रणे पेल्लमि। JU घत्ता--- हे परमेश्वरि, कृपाकर मेरे साथ वहाँ आइये, जहाँ आपकी पुत्र-वधू के साथ आपका भाई स्थित है। आकाश के मध्य मैं तुरन्त ही उन्हें दिखाता हूँ। ।। 234 ।। (24) मायामयी रूपिणी को हथेली पर रखकर प्रद्युम्न, कृष्ण एवं उनके दरबारियों को चुनौती देता है, कि यदि वे पराक्रमी हों तो उस अपहृत महिला को उससे वापिस लें ऐसा कहकर वह स्मर (प्रद्युम्न) उस (मायामयी कृत्रिम) रूपिणी को अपने कर-कमलों पर धरकर अपने भवन से निकला और शीघ्र ही वहाँ गया जहाँ राजसभा में मधुमधन के साथ प्रचण्ड पाण्डव बैठे थे। उन्हें देखकर वह स्मर बोला--"सुनो, हे कृष्ण, हे हलायुध, हे यादवगण, प्रचण्ड पुत्रों के साथ उपस्थित हे भोजक गण, और भी जो दुर्धर बलवान माण्डलिक उत्तम भट सामन्त यहाँ बैठे हों, मैं उन सभी को पुकार-पुकार कर कहता हूँ कि यदि आप लोग अपने मन में मेरे छल अधदा कुल का बल मानते हों तो क्यों नहीं आप सभी लोग तुरन्त ही अपने-अपने प्रहरणास्त्रों को लेकर मेरे पीछे लग जाते हैं? क्योंकि मैंने अति सुशील, सुकुमार एवं सरल भुजाओं बाली भीष्म-पुत्री रूपिणी का स्वयं अपहरण कर लिया है । जब रूपिणी के यहाँ उसका मंगेतर चेदिपति नरेश स्थित था, तब आपने छल से उस (रूपिणी) के घर जाकर उस बेचारे (चेदिपति) का छलपूर्वक वध कर दिया था। उस समय रण में सबको भोजन-धन देकर तत्पश्चात् बड़ी कठिनाई से आप उसका अपहरण कर भाग पाये थे। किन्तु, मैं तो खगेन्द्र हूँ। मैं यहाँ से तब तक नहीं टलूँगा, जब तक कि मैं तुम सबको रण में नहीं पेल डालूँगा। (24TAA) भोजसदि। (2) शिशुपाल । (1) अति ।
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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