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________________ 12.22.6] महाकद सिंह विरहाउ फजुषणपरिउ [247 चलति वलंति खलंति वि बेवि पवच्चहिं गच्छहिं धाय मुएदि । विरुद्ध भिति दडंति पडंति ससंति रसंति पुणो वि भिडंति । रएदि महाहउ एम रउदु किउ वलएवहो माण विम? हणेवि तलप्फइ पाडिउ तत्थ वरासणे संठिउ महुमहु जत्थ। पत्ता... अत्थाणंतरे थक्कु) वलु सुकिलामिय) गत्तर। णिय मायरिहे सभीउ रइरमणु वि संपत्तउ"।। 232।। इय सीरिहे किल माण-विमणू अवलोएवि देवि आहासइ णिसुणि तणय महो मण साहारउ कहइ मयणु मइ सरिसु पराइउ तुव सुग्णहंए समाणु गयणंगणे | भीसम-सुव पुणरवि आहासइ दल-विक्कोण सरिस णिय णंदणु । मझु सहोयरु काइँ ण दीसइ । सो भणु कहिं अछइ रिसि णारउ। खेयरपुर होतउं इह आयउ। मइमि धरिउ मा मुज्झ"हि णियमणे । तुव विवाहु कहि हुउ इय भासइ । हैं, हटते हैं, स्खलित होते हैं। धाड़ मारकर पुकारते हैं, पीछे जाते हैं। एक-दूसरे के विरुद्ध क्रुद्ध होकर भिड़ते है, डाँटते हैं, पड़ जाते हैं, दीर्घ श्वास लेते हैं, गर्जना करते हैं और फिर भिड़ जाते हैं। इस प्रकार पंचानन ने रौद्र महायुद्ध किया और बलदेव का मान-मर्दन कर डाला। पंचानन ने उस तड़फते हुए बलदेव को वहाँ फेंक दिया जहाँ मधुमथन—कृष्ण वरासन पर विराजमान थे। घत्ता- उधर, आस्थान (राजभवन) में पहुँचे हुए बलदेव का शारीर किलबिला रहा था और इधर, (पंचानन वेशधारी—) वह रतिरमण-प्रद्युम्न अपनी माता के पास पहुँचा ।। 232 ।। (22) रूपिणी के पूछने पर प्रद्युम्न ने बताया कि नारद एवं पुत्र-वधू ऊपर नभोयान में रुके हुए हैं इस प्रकार सीरपाणि बलदेव के मान-मर्दन किये जाने पर अपने पुत्र-प्रद्युम्न को बलदेव के समान पराक्रमी देखकर माता—देवी रूपिणी बोली- "मेरा सहोदर भाई नारद क्यों नहीं दिखाई दे रहा है?" हे पुत्र, सुनो, मेरा मन सम्हालो और बताओ कि ऋषि नारद कहाँ है? तब मदन ने कहा—"मेरे साथ ही ऋषि नारद यहाँ पधारे हैं। वे विद्याधरपर होते हए यहाँ आये हैं। तम्हारी स्नषा (बह) के साथ गगनांगण में ही उन्हें रोक दिया है। तुम अपने मन को मूर्च्छित मत करो। यह सुनकर भीष्मपुत्री पुनः बोली...."बोल, तेरा विवाह कहाँ, कब हुआ है?" तब स्मर बोला—"हे परमेश्वरि सुनो, दुर्योधन की पुत्री उदधिकुमारी के साथ, जिसका विवाह भानुकर्ण (21) (5) सप्तः . (6) खेदसिन्नगान । (1) संप्राप्तः । (219 (1) निज्मानसे मामूझिल्ला । (22) I. अर।
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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