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12.11.6]
महाकद सिंह विराउ पन्जुण्णचरिउ
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चवद्द भिक्खु अइ सुमहुर-वयणइँ मा रोवहि सुमाइ लुहि णयण.। लेहि सलिलु पक्खालहि सिरि"मुहु किं तुज्झु जि हउँ होमि ण तणुरहु । 'इय साहारवि विजा-थामइँ मायारूविणि णिम्मिय काम.।
दिव्वासणे उववेसिय तोसइ थिउ णियडिउ सइँ कुंचइ वेसइ । 10 घता- ताम परायउ सयलु जणु णवण करंतु संतु आहासइ। सामिणि सरहि पइज्ज तुहु मायारूविणि ताहँ पयासइ ।। 221 1।
(11) अलिउल सरिस हेलु अलथाउलि । संतहँ वयणु चलेइ ण महियलि । इय णिसुणेवि चित्त 'साणंदई जंपइ णाविउ सुमहुर सद्दई । मज्झु दोसु एक्कुवि णउ सामिणि णिसुणहि किण्ह गरसेर भामिणि । अलयावलि णिय कर संजोइवि मणिमउ- थालु तुरिउ तहिं ढोइवि । छेयइ केसंगुलि थिय तेपाइँ णासा-वंसु लुणिउँ अण्णाण ।
अवलायणु असेसु लहु भहिउ सच्चहि णाहूँ मडफरु मद्दि। से बोला—"हे माता, रोओ मत, अपने आँसू पोंछ डालो, जल लेकर अपना मुख धो लो, क्या में ही तुम्हारा पुत्र नहीं हूँ।" ___इस प्रकार कहकर उस भिक्षु ने अपनी विद्या को बुलाकर इच्छानुसार रूपिणी की एक मायामरी प्रतिमूर्ति बनवाई, सन्तोषपूर्वक उसे दिव्यासन पर बैठाया और स्वयं कंचुकी के वेश में उसके निकट बैठ गया। घत्ता--- उसी समय (सत्यभामा के) सभी लोग रूपिणी के यहाँ पहुंचे और नमस्कार कर बोले- "हे स्वामिनी, आप अपनी प्रतिज्ञा का स्मरण कीजिए।" तब उस मायामयी रूपिणी ने उन्हें कहा" ।। 221 ।।
(D सत्यभामा का नापित रानी रूपिणी के केश-कर्तन के स्थान पर अपनी तथा साथ में आयी हुई समस्त
महिलाओं की नाक, अंगुलियों एवं केश काट लेता है --"मेरे अलिकुल समान काले केश ले लो। महीतल में सज्जनों के वचनों का कोई मूल्य नहीं। यह सुनकर चित्त में आनन्दित होकर नापित सुमधुर शब्दों में बोला—"कृष्ण नरेश्वर की भामिनी, हे त्वामिनी, सुनो, इसमें मेरा एक भी दोष नहीं।" (यह कहकर उसने उस रूपिणी की) अलकावलि ( केशकलाय) को अपने हाथ से सँजोकर तुरन्त ही उसके नीचे एक मणिमय थाल वहाँ रख दिया। पुन: जब वह नापित केशों को छेदने (काटने) के लिए तत्पर हुआ तभी उसने अज्ञानतावश स्वयं अपने केश, अँगुली एवं नाक ही काट डाली (इतना ही नहीं सत्यभामा की ओर से आया हुआ) सम्पूर्ण अबलाजन भी तत्काल ही नापित के समान भद्दे शरीर वाली हो गयी। ऐसा प्रतीत होता था. मानों इस रूप में सत्यभामा का मान ही मर्दित कर दिया गया हो। सभी क्षुल्लक के प्रपंच
(10) 1) श्रीमुखम् । (2) सुनरि।
(1) 1.3 'अ।