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माकड सिंह विरइज पज्जुण्णचरिउ
भाणु- कण्णु वड्ढइणिय-मंदिरे मज्झु तर केवि अवहरिय एवहि सच्चंगउ परिणेसइ
उअहिमाल णामें विक्खाइय महो सिरु भद्दु णत्थि सुविसेसु दि
घत्ता — इस अहिभाणउ मज्झु जिउ जाइ सउछ होवि किर जामहिं । संवोहिम जं णारएण पु॒त्तासाएँ सुक्विीय तामहिं ।। 220 1
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तहो आगमणे चिण्ह जे भासिय
ते संजाय सयल जग दुल्लह अज्जु सिसो वासरु दिहि गारउ भंति ण होइ जिणेसर वयणहँ इय जंपिवि सोयाउर बयणइँ
पुण्णाहिए जण रायणाणंदिरे | ण वियाणउ खलविहिं कहि धरियउ । दुजो जिय सुय तहो देसइ । साणु राय सा एत्थु पराइम | एत्थ पलोयहि- लोड असेसु जि ।
(9) 1. ज ग 2. अ शुरलिय
सीमंधर - जिणेण उवएसिय णिसुणि भिक्ख हयण जण - वेल्लह । जेण मिलेसइ पुत्तु महारउ । हद्दिव सुर्णिय मणे - णयणहूँ । सजलोल्लिइँ थिय मउलेवि गयणइँ ।
| 12.9.5
के मण्डन के लिए चन्द्र-सूर्य के समान थे। गुण्य का प्रतापी भानुकर्ण (सत्यभामा का पुत्र तो ) लोगों के नेत्रों को आनन्दित करने वाले अपने राजमहल में बढ़ने लगा। किन्तु मेरे (रूपिणी के ) पुत्र को किसी ने अपहृत कर लिया । न जाने, खल-विधि ने उसे कैसे धर पकड़ा ?" अब सत्यभामा का पुत्र - भानुकर्ण परणेगा। दुर्योधन उसे अपनी पुत्री देगा, जो उदधिमाला के नाम से विख्यात है। वह अनुराग सहित यहाँ पहुँचने ही वाली है। विशेष रूप से अब मेरे सिर का कल्याण नहीं है। अर्थात् अब मेरे सिर का मुण्डन होगा और सभी लोग उसे देखेंगे । # इस प्रकार उस सौत (सत्यभामा ) के अभिमान से (ग्रसित ) मेरा जीवन व्यतीत हो रहा था। उसी समय नारद ने आकर मुझे सम्बोधित किया और तभी से मैं पुत्र मिलन की आशा से सुरक्षित बची हुई हूँ (और किसी भी क्षण अपने पुत्र के आगमन की प्रतीक्षा में बैठी हुई हूँ) । " 11 220 ।।
घत्ता
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शोकातुर रूपिणी को आश्वस्त कर क्षुल्लक उसकी मायामयी प्रतिमूर्ति बनवाता है। - "सीमन्धर जिन ने अपने उपदेश में उस पुत्र के आगमन सम्बन्धी जो-जो चिह्न बतलाये थे, वे सभी चिह्न पूरे हो गये हैं । जग - दुर्लभ तथा बुधजनों के बल्लभ हे भिक्षु, सुनो - आज पुत्र मिलन का दिन है, जिसके अनुसार धृतिवाला गुरु (महान्) एवं बीर्यवान् पुत्र मिलेगा। जिनेश्वर के वचनों में भ्रान्ति (सन्देह) नहीं है, और तभी से नींद मेरे मन एवं नेत्रों के अधीन हो गयी है, अर्थात् मैं तभी से सो नहीं पायी हूँ।" इसप्रकार शोकातुर वचन कहकर वह अपने सजल नेत्रों को मुकुलित कर चुप हो गयी। उसे देखकर वह भिक्षु अति सुमधुर वचनों