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महाफा सिंह विरहाउ फजुण्णचरित
[12.5.1
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(5) अंगुब्भउ एउ मज्झु जे हवउ विहिवसेण वीहत्थु वि रूवउ। तो इरि हलहर मणु कह रंनरम सच्चहे मुह पेछति ण लज्जमि। जो महुसूअणेण संजायउ
सो संभवइ भुवणे विक्खायउ। रूवबंतु-बल-बुद्धि समिद्ध
पडु' पंडिउ सुकित्ति गुणरिद्धउ। कित्तिउ किर वियप्पु मणि किज्जइ। पुण्ण समाणु रूउ पाविज्जइ। खेत्त गुणेण जंतु जुइ मणहरु भोय-भूमि णउ एणउ हरि खरु । हवइ तित्थु किडि करिहु ण करिवरु लोयहे कहिउ मज्झु रणे दुद्धर । मेहकूडू णामें तहिं पुरवरु
राणउ जमसंवरु विज्जाहरु । कणयमाल णामेण वि तहो पिय रंभ-तिलोत्तम रूवद् णं सिय । ताह भवणे वड्ढिउ णिट्ठिय दुहु विज्जाहिवइँ सामि छणससि सुहु ।
पाविय सोलह-लब्भ सुहाबण धीमहि-मिभंत जे दावण। घत्ता— रइवि विरूवउ णियय तणु चित्त सुद्धि मज्झु जि सुपरीक्वणु।
अवलोएवि कि सो जि मुहुँ बुद्धिमंतु सुछइल्लु वियरखणु।। 216।।
(5) रूपिणी सोचती है कि क्या यह क्षुल्लक ही उसका पुत्र है जो अपना वेश बदल कर उसकी परीक्षा ले रहा है?
__"यदि यह मेरा पत्र है तो भाग्यवश इसका ऐसा वीभत्स रूप कैसे हो गया और इसी कारण हरि, हलधर के मन को मैं कैसे प्रसन्न कर पाऊँगी? सत्यभामा के मुख को देखकर में लजाऊँगी नहीं? जो मधुसूदन से उत्पन्न हुआ है, उसकी भुवन में प्रसिद्धि निश्चित है। वह रूपवान होना चाहिए। बल-बुद्धि से समृद्ध होना चाहिए, चतुर पण्डित होना चाहिए और सुकीर्ति एवं गुणों से परिपूर्ण होना चाहिए कितने ही विकल्प अपने मन में कीजिए किन्तु रूप तो पुण्य के समान ही मिलता है।" ___"क्षेत्र के गुण से भोग-भूमि में यह जीव शरीर की कान्ति से मनोहर होता है। वहाँ रण में दुर्धर कहे जाने वाले मृग, सिंह एवं गधे नहीं होते। वहाँ किटि (शूकर), करि नहीं होते, करिदर भी नहीं होते।"
लोक के मध्य में मेघकूट मामका उत्तम पुर कहा गया है। वहाँ यमसंदर (कालसंबर) नामका विद्याधर राजा राज्य करता है। कनकमाला नामकी उसकी प्रिया है। मानों वह रूप में रम्भा, तिलोत्तमा से भी बढ़कर है। पूर्णचन्द्र के समान मुख वाला तथा दु:खों का नाश करने वाला मेरा वह पुत्र उस विद्याधिपों के स्वामी (कालसंवर) के घर में बढ़ा है। वहाँ उसने धीमानों द्वारा निर्धान्त रूप से दिये जाने योग्य 16 सुहावने लाभ (उपलब्धियाँ) प्राप्त किये। घत्ता--. अपना शरीर विरूप बनाकर मेरी चित्तशुद्धि का भलीभाँति परीक्षण कर बुद्धिमान, सुचतुर, विद्वान्
रूप क्या यही वह मेरा पुत्र है, जो मेरा मुख देख रहा है।" ।। 216।।
10 (1) पटुत ! (2) जीव । (3) हरिमादि अन्य प्रकार भवति।