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________________ 2281 महाकर सिंह विरइउ पज्जपणचरित [12.1.1 बारहमी संधी धुवक— वरविविहाहरणातंकियइँ दिटु विलासिणि सत्थें । जइ मिसइ णाइँ रूविणिहे घरे सिय पइसइ परमत्थें ।। छ।। णीलुप्पल-दल-देह-समुज्जल सिहिगल-अलि-तमाल सम कुंतल । छण-ससि-सम-मुह मुणि-मण-मोहण उड़गण-पह-दसणोह सुसोहण । तं वहर-विवीहल-सण्णिह सहहिं सवण सर हिंदोलय जह। गल-कंदले रेहत्तउ केह रेहइ गं अवलान " जेहउ। पीणुण्णय-वक्खोज अणोवम कुंकुम-लित्त-कणय-कलसोवम । दीसहि णं णवमालइ मालउ वाहउ वेल्लह लउ 'कुसुमालउ। तिवली-बलउ ताहे किं सीसइ मयणरइस-मग्गु तहिं बीसइ। गंभीर णाहिहे को पावइ रइ-रमणइ आवासिउ णावह। खामोयरि कडि-पिहुल रवण्णिय अमरविलासिणि णं अदयण्णिय । जणु वाहं अइ-करि-कर कारइ रंभा-यंभ-चलण सम सारह । 10 बारहवीं सन्धि रूपिणी-सौन्दर्य-वर्णन ध्रुवक- उस वटुक ने विविध श्रेष्ठ आभूषणों से अलंकृत तथा अन्य विलासिनियों के साथ रूपिणी को देखा और सुल्लक यति—के मायावी वेश में उसने परमार्थ से उस (रूपिणी) के भवन में प्रवेश किया। 1 छ।। ___ उस रूपिणी की देह नील-कमल के समान उज्ज्वल थी, कुन्तल मयूरकण्ठ, भ्रमर अथवा तमालवृक्ष के समान काले धे। उसका मुख मुनियों के भी मन को मोहने वाले पूर्णचन्द्र के समान था। उसकी दन्तावली तारागणों की प्रभा के समान सुशोभित थी। उसके अधर बिम्बाफल के समान रक्तवर्ण के थे। कान ऐसे शोभते थे जैसे सरोवर में हिंडोला ही पड़ा हो । ग्रीवा में रेखात्रय सुशोभित हो रही थी, मानों शंख का मुख ही शोभ रहा हो। कुमकुम से लिप्त कनककलश के समान उसके स्तन अत्यंत पीन, उन्नत एवं अनुपम थे। उसका वक्षस्थल नवीन मोतियों की माला से सुशोभित था। ऐसा प्रतीत होता था मानों उन्हें (उन मोतियों को) कामलता से ही लाया गया हो। त्रिदलि मण्डल उसके पेट में शोभता था। क्या बतावें वह ऐसा सुशोभित हो रहा था मानों मदन द्वारा विरचित मार्ग की दिखा रहा हो? उसकी नाभि गम्भीर थी. उसके पार को कौन पा सकता था? वह ऐसी प्रतीत होती थी मानों वह कामदेव का आवास स्थान ही हो। उसका उदर एवं कटि-भाग अत्यन्त कृश थे तथा नितम्ब भाग अत्यन्त पृथुल । वह ऐसी लगती थी मानों स्वर्ग से अमर विलासिनी देवी ही अवतरी हो। उसके बाहु-युगल ऐरावत हाथी की सूंड के समान थे। केले के थम्भ के समान उसकी सुन्दर सारभूत जंघाएँ थीं। उसकी गुल्फे (111. अ सुकुम्शलउ। (I) (1) संखवत्।
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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