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________________ प्रस्तावना [35 भवान्तर के इस प्रसंग में कवि ने पिछले भवान्तरों की ही पुनरावृत्ति की है (4/15 से 9/1.9 तक) (10)। इन भवान्तरों के साथ ही उन्होंने रूपिणी के भवान्तर भी बतलाए (11-13)। तत्पश्चात् प्रद्युम्न पुनः राजमहल में वापिस अन्या और उसने चाटुकारितापूर्ण वचनों के साथ कनकमाला से तीन विद्याएँ प्राप्त की और वहाँ से अपने महल में चला गया (14-15)। इधर कनकमाला ने प्रद्युम्न की ओर से कामाभिलाषा पूर्ण न किए जाने के कारण रुष्ट होकर अपने ही शरीर को क्षत-विक्षत कर डाला और प्रद्युम्न पर लांछन लगाकर राजा से उसकी शिकायत की। उसकी बातों पर विश्वास कर राजा ने भी अपने पुत्रों को उस प्रद्युम्न को मार डालने का आदेश दिया। इतना ही नहीं, राजा कालसंवर ने स्वयं भी युद्धस्थल में सामना करते हुए प्रद्युम्न को ललकारा (16-18)। फलस्वरूप, कालसंवर और प्रद्युम्न दोनों में घमासान युद्ध होने लगा। उसी समय संयोगवश नारद जी वहाँ आ पहुँचे। उन्होंने उन्हें समझा-बुझाकर युद्ध समाप्त करवाया और कालसंवर को प्रद्युम्न का यथार्थ परिचय देकर उसे (प्रद्युम्न को) अपने साथ दारामई ले जाने हेतु तैयार करने लगे। (19-24 नवीं सन्धि)। ____दारामई के लिए प्रस्थान करने के पूर्व नारद ने एक विमान की संरचना की, किन्तु बह विमान प्रद्युम्न को पसन्द नहीं आया। अत: उसने स्वयं एक वेगगामी विशेष विमान की रचना की और उसी पर दोनों सवार होकर आकाश-मार्ग से चले । मार्ग में वे नाना नदी, नद, वन, उपदन, सरोवर एवं प्राकृतिक सौन्दर्य-स्थलियों को देखते हुए एक स्थल पर पहुंचे। वहाँ कुरुराज की सुसज्जित चतुरंगिणी सेना को देखकर (1-7) नारद ने प्रद्युम्न को बतलाया कि 'दुर्योधन की जिस पुत्री (उदधि कुमारी) का विवाह तुम्हारे साथ होने वाला था, किन्तु तुम्हारा अपहरण हो जाने के कारण वह तुम्हारे साथ सम्पन्न नहीं हो पाया था, अब वही विवाह सत्यभामा के पुत्र राजकुमार भानु से सम्पन्न होने जा रहा है। इस प्रसंग से तुम्हारी माता रूपिणी को निश्चय ही बड़ी ठेस लगेगी।' यह सुनकर प्रद्युम्न ने अपनी माता को प्रसन्न करने की भावना से स्वयं एक भील का रूप धारण किया और वीभत्स रूप बना कर संग्राहक घोषित किया और अवसर पाकर वह उदधिकुमारी का अपहरण कर उसे अपने विमान में ले आया। नारद ने रोती हुई उदधिकुमारी को समझा बुझाकर तथा प्रद्युम्न के वास्तविक रूप को दिखला कर उसे उसका पति बतलाया। प्रद्युम्न अपना रूप परिवर्तिल कर अकेले ही दारामई नगरी में आया और भानुकुमार को अपमानित करने की दृष्टि से उसे ऐसे थोड़े पर बैठा दिया. जिसने उसे जमीन पर पटक दिया। इस कारण भानु की जग हँसाई हुई (8-17)। इधर अपने को सर्वोच्च दिखाने की दृष्टि से प्रद्युम्न स्वयं उस घोड़े पर सवार होकर अदृश्य हो गया (18-21 दसवीं सन्धि)। __प्रद्युम्न बहुविद्याधारी तो हो ही चुका था, अत: उसने अपनी विद्याओं का चमत्कार दिखाना प्रारम्भ किया। कहीं उसने मायावी घोड़े तैयार कर उससे सत्यभामा का उपवन चरवा दिया, तो कहीं मायावी बन्दर बनाकर किसी का उपवन नष्ट-भ्रष्ट करा दिया और कहीं पनिहारिनों के बीच में पहुँच कर वृद्ध-ब्राह्मण के रूप में उन्हें अनेक कौतुक दिखाना प्रारम्भ कर दिया। एक बार उसने बापी में स्नान करना चाहा, किन्तु जब वहाँ उपस्थित युवतियों ने उसे वैसा करने से रोका, तभी उसने अपने विचाबल से वापी का समस्त जल अपने कमण्डल में भर लिया। उसके इस कृत्य से कोधित होकर मुवतियों ने जब उस पर मुष्ठि-प्रहार किया तो उसने उन सबको विरूम बना दिया। बापी-जल से पूर्ण अपना कमण्डल लेकर जब वह राजमार्ग से जा रहा था, तभी वह उसके हाथ से छूट कर गिर पड़ा। फलत: बाजार में जल की बाढ़ आ गयी और सर्वत्र हाहाकार मच गया। इसी प्रकार सुगन्धित पुष्पों को सुगन्धहीन बनाकर, स्वर्ण-दीनारों को लोहे में बदल कर, राजमहल में अपने द्वारा निर्मित
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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